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चेतना का पूर्ण मिटाव केसे होता हे।

Great knowledge of soul मित्रो, स्थूल सरीर का  जन्म होता हे और वही मरता हे। सूक्ष्म शरीर बचता हे अपने संस्कार के साथ कर्म को भोगने के लिए अब बात ये हे की ये सूक्ष्म सरिर क्या हे । इसे समझने के लिए हमे चेतना के अनंत खौल को जानना पड़ेगा तभी हम अच्छी तरह से समझ सकते हे। जैसे स्थूल शरीर इस चेतना का खौल हे। वैसे ही सूक्ष्म शरीर भी चेतना का खौल ही हे। फिर इसके अनंत सूक्ष्म खौल होते हे। जैसे कारण शरीर, महाकारण शरीर, कैवलय शरीर नूरी शरीर महा नूरी शरीर ऐसे अनंतो शरीर हे। प्रथम जो शरीर हे। उसे परम सत्य पुरुष कहते। और इसे ही परम चेतना कहते हे। ऐसे ही स्थूलता में अनंतो शरीर हे। जैसे कुत्ता,बिल्ली, बंदर,भालू, कबूतर, चिड़िया अनंत योनियां हे। ये योनियां ही स्थूल शरीर होते हे। अब बात ये आती हे की ये सभी योनियां या शरीर ही मरते हे। चेतना नही मरती हे। चेतना ने इन सरीरो का आवरण ले रेखा था। ये ही जल कर राख होते हे। चेतना बचती हे। मित्रो ये ज्ञान नही हे। ये समस्त ज्ञान और अज्ञान के पार हे। ये ही अमर सत्य ज्ञान हे।  इस ज्ञान को और अधिक जानने के लिए । अपना नेम और मोबाइल नंबर सेंड करे। हमने जो जाना उसकी पूर्ण

अनंतो ढोंग रचाकर मोक्ष की प्राप्ति नही कुछ और ही मिलता हे।

Great knowledge of soul मित्रो,  आज हम एक अच्छे विषय पर बात करेंगे। जो अनंतो ढोंग की पोल खोल देगा। पूर्ण सत्य जब घटता हे तब पूर्ण ताम झाम खुल जाते है। ढोंगी बाबाओं के।  मेने किसी बाबा से पूछा सपने में की बाबा  आप जप करते हो। आप तप भी करते हो। यज्ञ भी करते हो । लेकिन क्यू करते हो ।  कर्म से फल की प्राप्ति होती हे इसलिए करते हे बच्चा। ये फल हमेशा के लिए तो नही मिलते हे बाबा । जितने और जेसे कर्म वैसे ही उतने फल मिलते हे बच्चा। तो आपका मुख्य लक्ष्य तो मोक्ष ही हे।  तो फिर इन फलों का आप क्या करोगे । कर्म से तो मोक्ष नही मिलता हे बाबा।  मोक्ष के लिए तो सब कुछ छोड़ना पड़ता हे। फिर इन कर्मो को क्यू करते हो। या फिर ये सब दिखावटी ही हे। कोनसे  ढोंग दिखावटी हे बच्चा । आप जैसे अनंतो प्रकार के तिलक लगा लेते हो । भगवा झोला पहन लेते हो। गले में अनंतो मालाये डाल लेते हो। बड़े बड़े बाल और दाढ़ी और ये कमंडल किसलिए। मोक्ष के लिए । कुछ पाने के लिए ये सब जरूरी हे क्या कर्म करो और अपना फल प्राप्त करो। बात समाप्त इतनी रचना किसलिऐ। बिना रचना के कर्म फल नही मिलता हे क्या। ये ढोंग किसलिये दिखाते हो। की आप स्पेश

आत्मिक निशुल्कता और तात्विक निशुल्कता में क्या अंतर हे।

Great knowledge of soul   मित्रो,  पूरा लेख पढ़ लोगे तब भी कुछ समझ नही आयेगा क्युकी ये सहज और सरल ज्ञान हे ।और हमे आदत हे असहज होकर हर काम को करने की या फिर हमने आज तक ये ही जाना हे की परमात्मा ही क्या इस जगत की कोई भी चीज अधिक से अधिक प्रयास करने से ही मिलती हे । जैसे जप करो तो भगवान मिलेगा तप करो तो............. व्रत करो तो भगवान कुछ देगा। समाधि लगा लो भगवान मिलेगा। मतलब तुम से पहले भगवान को चाहिए । जब वो संतुष्ट हो जायेगा तब तुमको देगा। इसीलिए ये निशुल्कता वाली बाते हमे समझ में नही आयेगी।  आज हम आत्मिक निशुल्कता और तात्विक निशुल्कता  पर बात करेंगे। आत्मिक निशुल्कता सर्वव्याप्त हे और तात्विक निशुल्कता केवल व्याप्त हे। आत्मिक निशुल्कता सहज और सरल हे। इसको लेने के लिए कोई प्रयास नहीं करने पड़ते हे। वो प्रयास रहित हे। तात्विक निशुल्कता को प्राप्त करने के लिए प्रयास की जरूरत पड़ती हे। इसको लेने के लिए आना जाना ही पड़ता  हे। अब हम इसको सरलता से समझते हे । देखो,  मित्रों आत्मित निशुल्कता सर्वव्याप्त हे इसीलिए इसको लेने के लिए हम कहा जाए । कही आने जाने की जरूरत ही नही पड़ती हे।  जहा हे वही

स्थूल गर्भ और सूक्ष्म गर्भ में क्या अंतर हे।

Great knowledge of soul मित्रो, आज का विषय अत्यंत महत्वपूर्ण हे। ये विषय आपके अनंत रूढ़िवादी विचारो को तोड़ कर रख देगा। जो ये कहते हे की में किसी गर्भ से नहीं आया वो भी किसी न किसी गर्भ से ही आया हे।  क्योंकि अनंत सूक्ष्म शरीर होते हे और जो जितनी सूक्ष्मता से जितनी स्थूलता में आता हे वो किसी प्रक्रिया के तहत ही स्थूलता में आता हे। कुछ वस्तु अदृश्य होती हे और वह अदृश्य वस्तु अनंत सूक्ष्मता को धारण किए होती हे।   अब विषय ये हे की स्थूल गर्भ और सूक्ष्म गर्भ में अंतर क्या हे। अब आप मुझे बताओ की आपका जन्म स्थूल गर्भ से हुआ या फिर सुक्ष्म गर्भ से।  आप कहोगे की स्थूल गर्भ से मतलब मां के पेट से । तो मित्रो ये जन्म हमारा प्रथम जन्म हे या आखरी जन्म। बाते बहुत हे क्युकी ज्ञान भी अनंत हे। तो मित्रो आपका प्रथम जन्म परमचेतना से हुआ। जो अति सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म हे। परम चेतना से फिर नीचे के स्तर में चेतना का जन्म होता हे। क्युकी चेतना गिरती हे। उच्चता से निम्नता की और । परमचेतना से चेतना का जन्म हुआ।  और फिर चेतना जन्म लेती और मरती हुई । फिर जन्म लेते लेते हम स्थूलता में आ गए। तब स्थूलता में हमार

सूक्ष्म कर्म और स्थूल कर्म में अंतर

Great knowledge of soul मित्रो आज हम सूक्ष्म और स्थूल कर्म को जानेंगे। हम जिन कर्मो को करते हे उनको भी और जिन कर्मो को अनजाने में करते हे उनको भी जानेगे। लेकिन कर्म हमको करने ही पड़ते हे। बिना कर्म किए हम रह ही नही सकते हे।  ये अनंतो प्रकृतियो का बहाव ही हे जिसमे हमको बहना ही पड़ता हे।  कर्म बहाव ही हे। और ये बहाव फिक्स हे। इसलिए कर्म भी फिक्स हे। भविष्य में क्या होगा और कब होगा केसे होगा और क्यू होगा। ये बताना क्या कर्मो का फिक्स होना साबित नही करता हे । जब हमारा भविष्य फिक्स हे । तो वर्तमान फिक्स नही होगा । भविष्य में जो होगा उसी की पूर्ति हम वर्तमान में करते हे। कि जब हम वर्तमान में ये करेंगे तब भविष्य में ये घटना घटित होगी।  और किन किन घटनाओं में बदलाव होगा किस में नहीं ये भी फिक्स हे। इसको जानने के लिए आत्म समझ होनी चहिए क्युकी आत्मा ही आपके अनंतो आने वाले भविष्य की घटनाओं को जानती हे। वो जानन हार हे वो सब जानता हे आपके अगले, पिछले समस्त कर्मो को ।  अब प्रश्न ये उठता हे । हमारे आलस्य मन में की हम मेहनत ही क्यों करे। जब समस्त कर्म फिक्स हे तो हम कर्म ही क्यों करे। समस्त कर्मो का फल

अमर जीवन और मृत जीवन में क्या अंतर है।

Great knowledge of soul  मित्रो, ये विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। कि जीवन भी मृत होता हे। और पूर्ण जीवन अमरता से ही मिलता हे।  और मृत जीवन मृत विवेक ही होता हे। और अमर जीवन अमर विवेक ही होता हे। मृत जीवन अज्ञानता का प्रतीक हे। और अमर जीवन ही पूर्ण ज्ञान हे। और आत्मा ही अमर जीवन हे अर्थात आत्मा ही अमर हे  हम जो जीवन जीते हे। वो मृत जीवन ही जीते हे। मृत जीवन से तात्पर्य अधूरा जीवन जो ने तो पूर्णता से मरता हे। और ने ही पूर्णता से जीता हे।  मृत जीवन का मतलब अज्ञानता का जीवन। मृत जीवन का मतलब पूर्ण असत्य का जीवन। मृत जीवन का तात्पर्य पूर्ण परतंत्रता का जीवन जिसमे हम पूर्ण स्वतंत्र नही हे। और ये मृत जीवन भी उस अमर जीवन के आधार से ही जीवित हे । अगर वो अमर जीवन न हो तो हम सब मृत ही हे।  उसी की कृपा हे की हम सब मृत होते हुऐ भी जीवित हे। परमचेतना परमसुन्य के आधार से जीवित हे। और परमसुन्य पूर्ण परमात्मा के आधार से । आत्मा परमात्मा दोनो एक ही हे। क्युकी पूर्ण अमर दो नहीं हो सकते हे। दो ही धारा हे । एक पूर्ण सत्य और एक पूर्ण असत्य । पूर्ण असत्य ने अपने आपको अर्द्ध सत्य+अर्द्ध असत्य में  विभाजित कर रखा

परिवर्तनशील सत्ता और अपरिवर्तनशील सत्ता में क्या अंतर हे।

Great knowledge of soul मित्रो परिवर्तनशील और अपरिवर्तनशील सत्ता में अनंतो अंतर हे। लेकिन आज हम कुछ महत्वपूर्ण अंतरों को जानेंगे। परिवर्तनशील सत्ता एक चक्र में कार्य करती हे। और ये समय के साथ परिवर्तित होती रहती हे। इस समस्त जगत की प्रत्येक वस्तु या जीव या फिर जीव जंतु या फिर समस्त श्रृष्टि परिवर्तित चक्र का हिस्सा ही हे। जिसे हम निर्जीव समझते हे वह भी परिवर्तित हे। समय का अंतर हे कि कुछ चीजे कुछ अंतराल पर परिवर्तित हो जाती हे और कुछ लम्बे समय के बाद परिवर्तित होती हे। लेकिन परिवर्तित जरूर होती हे। इस समस्त जगत की अनंतो सुक्ष्म वस्तुएं और अनंतो स्थूल वस्तुएं परिवर्तनशील ही हे। जैसे जल, वायु, सूर्य,चंद्र  अग्नी, पेड़ पौधे, जीव जंतु , विचार , सुख,दुख, तारे, और अनंतो ब्रह्माण्ड  भाव, क्रोध ,शांति,लोभ,करुणा, स्वप्न, आदि अनंतो  शब्द बदलते हे अशब्द में । दिन परिवर्तित होते हे रात में। और रात परिवर्तित होती हे दिन मे। ऋतुएं भी परिवर्तित होती रहती हे। मन भी बदलता हे। विस्वास भी बदलता हे। और प्रकाश परिवर्तित होता हे अंधकार में। और अंधकार परिवर्तित होता हे प्रकाश में। और अज्ञान परिवर्तित होता हे