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मार्च 19, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुरु और चेले में क्या अंतर हे और इस अन्तर की सत्यता क्या हे।

 Great knowledge of soul मित्रो आज का विषय बहुत ही सुन्दर है। ये हमारी अनंतो अज्ञानताओ को तो समाप्त करेगा ही साथ में इन गुरुओ के मकड़ जाल से छुड़ाने में भी मदद करेगा। तो फिर चलते हे अपने लेख की और  गुरू और चेले में क्या अंतर हे। गुरु वही जो सत्य मार्गदर्शक बने हमारे अध्यात्म मार्ग का और निशुल्क हो उसके दर्शन और निशुल्क हो उसका ज्ञान और निशुल्क हो उसका मार्गदर्शन।  और उसका प्रत्येक कर्म निशुल्क हो। समस्त इच्छाओं से समस्त वासनाओं से पूर्ण मुक्त हो। और पद प्रतिष्ठा का ने तो अभिमान हो। और न ही स्वाभिमान उसके दर पर गरीब और अमीर का कोई भेदभाव ने हो। और उसकी नजरो में सब समान हो ।  क्या गुरुओं को इतने बड़े बड़े आश्रमों की आवस्कताओ की जरूरत हे। सत्य का मार्गदर्शक बनने के लिए। क्या आश्रमों का विकाश और निर्माण कराकर ही  सत्य मिलता हे।  क्या गुरु दक्षिणा से ही सत्य मिलता हे। जो पापी को भी सत्य मार्ग पर चला सके। और धर्मात्मा बना दे। ऐसी समर्थता ही तो सत्य गुरु की पहचान कराती हे। लेकिन आज वास्तविकता कुछ और ही हे। आज तो गुरुओं की गुरु दक्षिणा इतनी होती हे की जीवन भर की कमाई भी कम पड़ जाए फिर भी इनका

आत्मिक प्रेम और तात्विक प्रेम में अंतर क्या हे।

The great knowledge of soul मित्रो, आज हम जानेंगे आत्मिक प्रेम और तात्विक प्रेम में क्या अंतर है, सबसे पहले तात्विकता को जानते है। तात्विकता दो धाराओ में काम करती हे पॉजिटिव और नेगेटिव और ये दो धाराये जब मिलती हे तो सुन्य में परिवर्तित हो जाती हे। अब ये सुन्य भी अनंत हे। जैसे हम या तो किसी को प्रेम करेंगे या फिर नफरत या फिर ने तो नफरत और ने ही प्रेम । जब पॉजिटिव होते हे तो प्रेम और जब नेगेटिव होते हे तो नफरत । सुन्य का मतलब साइलेंट होना।  नेगेटिव भी दो धाराओं में बहता हे और पॉजिटिव भी। और सबमें सूक्ष्मता और स्थूलता पाई जाती हे। तात्विक प्रेम को जानने से पहले तत्व को जानना जरूरी हे। परमसुन्य से परमचेतना का जन्म हुआ और परमचेतना से दो धाराये निकली एक निराकार और एक साकार ।  जब ये धाराये आपस में मिलती हे अपने सफर के बाद  तब ये सुन्य में परिवर्तित हो जाती हे। ये परम चेतनय का सुन्य कहलाता हे। फिर दो धाराये निकलती हे एक साकार और एक निराकार जब ये दोनो धाराये मिलती हे फिर परम महा चेतैन्य सुन्य का जन्म होता हे। इस प्रकार ये चक्र चलता ही रहता हे। सुन्य को शब्द भी कहते हे जैसे हम जिस शब्द में रह रह

आत्मा और चेतना और परमसुन्य में क्या अंतर है

Great knowledge of soul  मित्रो  आत्मा और चेतना और परमसुन्य इसको समझना अत्यंत आवश्यक हे बगैर इसको समझे हम सत्य को नहीं जान सकते हे। और सत्य क्या हे ये समझना बहुत जरूरी हे। सर्वप्रथम हमे परमसुन्य को जानना जरूरी हे। परमसुन्य क्या हे ये विज्ञान की भाषा में सबसे अंतिम छोर हे अर्थात किसी तत्व का अंतिम रिजल्ट हे। कैसे चलो जानते हे देखो  परमाणुओ के सयोजन से अणुओ का निर्माण होता हे। तो सबसे सूक्ष्म परमाणु हुआ और परमाणुओ से भी सूक्ष्म नाभिक होते हे जिनमे नियुट्रान और प्रोटान होते हे। इससे भी सूक्ष्म क्वार्क होते हे। ये प्रक्रिया जब अंतिम छोर पर होती हे तब वह परम सुन्य अवस्था कहलाती हे। अभी विज्ञान  परमाणुओ से क्वॉर्क तक की यात्रा ही कर पाया है।  लेकिन हमे इसकी अनंता में नहीं जाना हे। इसमें विज्ञान को जाने दो । खोज करने दो। सब कुछ सामने आ जाएगा। वरना हमारे करोड़ो वर्ष इसे समझने ही लग जायेंगे। ये यात्रा अनंतो सूक्ष्मता की यात्रा हे। अनंतो जन्म भी कम पड़ जायेंगे। समाजदारी इसी में हे की इसकी अनंतो सूक्ष्मता और अनंतो स्थुलता के जो पार भी हे और जो इनमे रम्या राम हे उसको जानो तो आपकी मुक्ति होगी। और व

सब कुछ पा लेने के बाद भी हम अधूरे से क्यू रह जाते हे

Great knowledge of soul   मित्रो   आपका स्वागत है आज हम अपने लेख में बताने जा रहे की     कैसे हम अपने जीवन में सब कुछ पाकर भी कुछ अधूरा         अधूरा सा महसूस फील करते हे क्यू हम इस दुनिया में अकेले   से पड़ जाते हे।      हमे सुखी जीवन जीने के लिए स्वस्थ तन और स्वस्थ मन  के     साथ साथ प्रयाप्त धन की भी आवश्यकता  होती है।    लेकिन हम समय के साथ साथ प्रयाप्त धन तो प्राप्त कर ही      लेते हे अपने किसी भी व्यवसाय को कर के।   और बाहरी सौंदर्य अर्थात तन को भी आर्टिफिसल प्रोडक्ट        का इस्तेमाल करके सुंदर तो बना ही लेते हे।   बाहर से अपने मन को भी ठीक ठाक रख ही लेते हे   फिर चाहे अंदर कुछ भी चल रहा हो ।     हमारे शरीर का नुकसान होना ही हे चाहे हम कितनी भी  कोशिश करले। ये शरीर हे ही नाशवान ये नस्ट होता ही है। चाहे अच्छा करले या चाहे बुरा अंतिम परिणाम सबकुछ समाप्त होना ही है।      लेकिन क्या हमने कभी सोचा हे की ये ठीक ठाक वाली           प्रक्रिया जो हम अपना रहे हे वो आगे हमारे ही जीवन के लिए   कितनी बड़ी समस्या को जन्म दे रही हे।     वैसे तो हम उलझे हुए तो हे ही जन्मों जन्मों से और उलझ     

असत्य को पूर्ण सत्य के सामने झुकना ही पड़ता हैं। है

मित्रों पूर्ण सत्य के सामने असत्य को झुकना ही पड़ता है इस लेख के माध्यम से मैं बताना चाहता हूं की सत्य को कभी पराजित नहीं किया जा सकता है। और ना ही सत्य कभी परेशान होता है। हमारी यह मान्यताएं निरर्थक और व्यर्थ है। क्योंकि हमने पूर्ण सत्य को कभी जाना ही नहीं उसे पहचानने की कभी कोशिश ही नहीं की। क्योंकि हमे हमेशा असत्य में ही उलझते रहे। असत्य के समस्त बंधनों  की काट पूर्ण सत्य के पास ही है। पूर्ण सत्य के आधार पर ही यह समस्त सृष्टिया समस्त प्रकृति और यह समस्त जीव जीवित है। चल रहे हे। फिर सत्य कैसे पराजित हो सकता है कैसे परेशान हो सकता है आप मुझे बता सकते हैं तो बता दीजिए। पूर्ण सत्य ही आत्मा है और आत्मा अजर अमर अविनाशी अखंडित निर्मोही निर्बंध अलख हे अलख जिसे आज तक कभी किसी ने लखा नहीं उसे अलख कहते हैं जो निर्बंध है जिस पर कभी किसी बंधन का आवरण कभी चढ़ा ही  नहीं ।  वो असत्य के सामने घुटने टेकेगा परेशान होगा पराजित होगा फिर तो असत्य ही परमात्मा हो गया नहीं मित्रो हमने कभी पूर्ण सत्य को कभी जाना ही नहीं पूर्ण सत्य तो असत्य और अज्ञानता को मिटाता है। मित्रो पूर्ण सत्य ही मोक्ष प्राप्ति का साधन