शुक्रवार, 24 मार्च 2023

आत्मिक प्रेम और तात्विक प्रेम में अंतर क्या हे।

The great knowledge of soul

मित्रो,
आज हम जानेंगे आत्मिक प्रेम और तात्विक प्रेम में क्या अंतर है, सबसे पहले तात्विकता को जानते है।
तात्विकता दो धाराओ में काम करती हे पॉजिटिव और नेगेटिव
और ये दो धाराये जब मिलती हे तो सुन्य में परिवर्तित हो जाती हे। अब ये सुन्य भी अनंत हे।
जैसे हम या तो किसी को प्रेम करेंगे या फिर नफरत या फिर ने तो नफरत और ने ही प्रेम । जब पॉजिटिव होते हे तो प्रेम और जब नेगेटिव होते हे तो नफरत । सुन्य का मतलब साइलेंट होना। 
नेगेटिव भी दो धाराओं में बहता हे और पॉजिटिव भी।
और सबमें सूक्ष्मता और स्थूलता पाई जाती हे।

तात्विक प्रेम को जानने से पहले तत्व को जानना जरूरी हे।
परमसुन्य से परमचेतना का जन्म हुआ और परमचेतना से
दो धाराये निकली एक निराकार और एक साकार । 
जब ये धाराये आपस में मिलती हे अपने सफर के बाद 
तब ये सुन्य में परिवर्तित हो जाती हे। ये परम चेतनय का सुन्य
कहलाता हे। फिर दो धाराये निकलती हे एक साकार और एक निराकार जब ये दोनो धाराये मिलती हे फिर परम महा चेतैन्य सुन्य का जन्म होता हे। इस प्रकार ये चक्र चलता ही रहता हे।
सुन्य को शब्द भी कहते हे जैसे हम जिस शब्द में रह रहे हे वह उस शब्द का सुन्य हे  जैसे हम ओंकार के शब्द में रह रहे हे।
आकाश क्या हे आकाश सुन्य ही तो हे। हम जिस आकाश के नीचे रह रहे हे वो ओंकार के शब्द का सुन्य ही तो हे। शब्द क्या हे शब्द धुन ही तो हे। वाइब्रेशन ही तो हे । ऐसे ही अनेकों सुन्य
के आकाश हे जैसे ॐ ,सोहम ,कारण, महाकारण, नूरी, अनेकों सूक्ष्म लॉक हे अनंत सुन्य हे। इसे समझने के लिए हमे अनंतो जन्म भी कम पड़ जायेंगे । समाजदारी इसी में हे कि हमे अपना समय उस पूर्ण सत्य आत्मा को जानने में लगाना चाहिए।
उस अजर अमर की कृपा को प्राप्त करने में लगाना चाहिए ।
जिससे हमारी मुक्ति हो और हम इन बंधनों से छूट जाए। सदा सदा के लिए। 

वो ही हे परम सर्व हितकारी।उससे जुड़ो आपका कल्याण होगा।

परमसुन्य से परमसुन्य की यात्रा या चक्र ये अनंतो युगो की यात्रा होती हे। ये यात्रा प्रकृति के चक्र के माध्यम से भी पूर्ण होती हे।
सुन्य से सुन्य की यात्रा भी प्रकृति के माध्यम से पूर्ण होती ही हे।
लेकिन जब हम ध्यान से या फिर किसी और व्यवस्था से इस चक्र को तोड़ते हे तो हम प्रकृति के संविधान को तोड़ते हे।
और इसको तोड़ने की सजा भी हम को भुगतनी पड़ती है।
इसका फल तो हमे मिलता ही हे।लेकिन उसका भुगतान भी हमको करना पड़ता हे। इसलिए जितने हम ध्यान से सूक्ष्मता
में हम पहुंचते हे। जिस भी लोक में ,
वहा का सुख भोग कर हमे वापस आना पड़ता हे। 

अरे हम इन लोको के सुखों को भोग कर ही तो इस धरती पर आए हे ।
अनंत सूक्ष्म लोक हे अनंत स्थूल लोक हे।

तात्विक प्रेम कभी पूर्ण नहीं होता है। ये अधूरा ही रह जाता हे आत्मिक प्रेम ही पूर्ण हे और पूर्ण सत्य ही आत्मिक प्रेम हे।
तात्विक प्रेम बदलता है। 
आत्मिक प्रेम अपरिवर्तित हे। ये कभी नहीं बदलता है ।
आत्मिक प्रेम का कभी विनाश नही होता है।
आत्मिक प्रेम अविनाशी हे।
आत्मिक प्रेम अजर अमर हे।
आत्मिक प्रेम असीमित हे।
जब की तात्विक प्रेम सीमित हे।
तात्विक प्रेम में बंधन हे।
आत्मिक प्रेम बंधन मुक्त हे।
तात्विक प्रेम में भय रेहता हे।
आत्मिक प्रेम निर्भय होता हे।
तात्विक प्रेम स्वार्थ पूर्ण होता हे।
आत्मिक प्रेम पूर्ण निस्वार्थ होता हे।
मित्रो आज इस लेख में बस इतना ही लिखना था 
वैसे आत्मिक प्रेम को लिख पाना पूर्ण असंभव ही है।क्योंकि उसका प्रेम बेअंत हे । पूर्णता से बेहद हे। जिसकी कोई हद नहीं उसे बेहद कहते हे।

में उसको पूर्ण रूप से समझा ही नही सकता हूं।
उसका प्रेम परम पूर्ण पवित्र हे। 
उसका प्रेम निरअहंकारी  है।
भाव और भावना के पार हे भावातीत  है।
सत्य और असत्य के पार पूर्ण सत्य हे।

सत्य भी दो प्रकार के होते हे एक सत्य खण्डित होता हे
और एक सत्य अखंडित । मतलब बहुत गहरा हे
जो सत्य मिटता हे वो खण्डित हे 
जो सत्य बनता और बिगड़ता है वो परीवर्तित हे। बदलता हे।

और पूर्ण सत्य ने तो बनता हे और ने ही बिगड़ता है  वो तो अपरिवर्तित हे। पूर्णता से अटल हे। इसलिए उसे पूर्ण अटल परमात्मा कहते हे।
तत्व चेतना ही हे। और अतत्व परमसुन्य हे और इसके पार जो हे वो निहतत्व हे। 
सब्द और असब्द के पार निशब्द ही परमात्मा हे
शब्द से ही संसार बना हे। 
शब्द से ही अनंत तत्व बने हे।

हमारे समझ में जो नहीं आता है। उसे हम नकार देते है।
और हम इतने सक्षम भी नहीं हे। की क्या सत्य हे और क्या असत्य इसको जान पाए। लेकिन हम इतने असक्षम भी नहीं हे
की किसी भी चीज को हम पहचान भी ना सके। 

हमारे हाथ में केवल बहना ही लिखा है। क्योंकि हम बहाव का हिस्सा हे। और समय के साथ बस बहते ही जा रहे हे।
बहते ही जा रहे हे।
जन्मों जन्मों से बहते ही आ रहे हे। और बहते ही जा रहे हे।
ये बहाव रुकता ही नहीं हे । 
रोकने से भी नहीं रुकता है।
ये रूक जाए या फिर थम जाए ।
तो हमारी जन्म जन्म की थकान मिट जाय। तो
हम शांत हो जाय । हम संतुष्ट हो जाए। 
हम पूर्ण आनंदित हो जाय।

हमारी भाग दौड़ रूक जाए तो हम परमशांत हो जाए।
लोग कहते हे। की भागोगे नही तो पाओगे केसे।
में उनसे कहता हू की अगर भागने से ही सब कुछ मिल जाए
तो रुक ने की जरुरत ही क्या हे।  
ठहरने की जरुरत ही क्या हे।
बस भागते ही रहो भागने से ही सब कुछ मिल जाएगा।
में उनसे कहता हू की भाई रूक तो कोई सकता ही नहीं।
हम सब समय के साथ भाग ही तो रहे हे। 
रूक ना तो हमारे हाथ में हे ही नहीं।
रूक जाए तो चमत्कार न हो जाय।

फिर भी लोग कहते हे की अरे भाई देखो पैसा कमाने के लिऐ भागना तो पड़ेगा।
बिलकुल भागना पड़ेगा लेकिन पैसा किस लिए कमाना हे।
अरे भाई पैसे से सब कुछ मिलता हे।
पैसा जरूरी हे ।
मेने कहा भाई पैसो से 
जो ये मेरा अनमोल जीवन बह रहा हे। समय के साथ साथ 
उसे रोक दो । बस  कुछ समय के लिए नही
हमेशा के लिए रोक दो और फिर जितना पैसा आपको चाहिए उतना पैसा में आपको कमा कमा के दे दूंगा।

भाई मेरा ये जीवन मरने के बाद भी एक पल के लिए भी नहीं रुकता बस इसे रुक वा दो। मेरी जन्म जन्म की भाग दौड़ रूक वा दो बस । ये नहीं हो सकता यार ।
तो फिर इसे फास्ट करवा दो ।
ये भी नही हो सकता । ये जैसे चलता हे वैसे ही चलेगा।
चलो मेरे परिवार को हमेशा के लिए सुरक्षित करवा दो।

ये नहीं हो सकता । अबे यार जब इन पैसों से कुछ हो ही नहीं सकता तो में क्यू इसके पीछे भागू। 
टेंपरेरी सुरक्षा के लिऐ।
टेंपरेरी सुख के लिए ।
टेंपरेरी दिखावे के लिऐ या टेंपरेरी प्रसिद्धि के लिऐ।
जो हमेशा रहे उस चीज के पीछे भागो ना भागना ही हे तो। पैसा जीवन चलाने के लिए जरूरी हे । इसे इतना ही कमाओ की तुम्हारे परिवार और तुम्हारी आवश्यकताये पूर्ण हो जाए।  जरूरते नहीं जरुरते कभी पूर्ण नही हुई हे। 
डिमांड हमेशा बनी ही रहती हैं। और बनती ही रहेगी। 
जब तक हम मर न जाए । 
साथ वैसे कुछ जाता नहीं हे। ओर जाता हे तो ।

सूक्ष्मता के साथ जाता हे। स्थूलता तो यही रह जाती हे।
सूक्ष्म बंधन ही साथ जाते हे। हमारे । 

हम बेफिक्र हों जाए। 
हम तनाव मुक्त हो जाए। 
हम पूर्ण शान्त हो जाए।
बस और क्या चाहिए हमे।

आत्मिक प्रेम अखंडित हे। तात्विक प्रेम खंडित होता है।
इसलिए मित्रो उस अखंडित प्रेम से जुड़ो जीवन पूर्ण हो जायेगा।

धन्यवाद 










 
 
 



      

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