शनिवार, 25 मार्च 2023

गुरु और चेले में क्या अंतर हे और इस अन्तर की सत्यता क्या हे।

 Great knowledge of soul


मित्रो आज का विषय बहुत ही सुन्दर है। ये हमारी अनंतो अज्ञानताओ को तो समाप्त करेगा ही साथ में इन गुरुओ के मकड़ जाल से छुड़ाने में भी मदद करेगा।

तो फिर चलते हे अपने लेख की और 
गुरू और चेले में क्या अंतर हे।

गुरु वही जो सत्य मार्गदर्शक बने हमारे अध्यात्म मार्ग का
और निशुल्क हो उसके दर्शन और निशुल्क हो उसका ज्ञान
और निशुल्क हो उसका मार्गदर्शन। 

और उसका प्रत्येक कर्म निशुल्क हो।

समस्त इच्छाओं से समस्त वासनाओं से पूर्ण मुक्त हो।

और पद प्रतिष्ठा का ने तो अभिमान हो। और न ही स्वाभिमान
उसके दर पर गरीब और अमीर का कोई भेदभाव ने हो।
और उसकी नजरो में सब समान हो । 

क्या गुरुओं को इतने बड़े बड़े आश्रमों की आवस्कताओ की जरूरत हे। सत्य का मार्गदर्शक बनने के लिए।

क्या आश्रमों का विकाश और निर्माण कराकर ही 
सत्य मिलता हे। 

क्या गुरु दक्षिणा से ही सत्य मिलता हे।

जो पापी को भी सत्य मार्ग पर चला सके। और धर्मात्मा बना दे।
ऐसी समर्थता ही तो सत्य गुरु की पहचान कराती हे।
लेकिन आज वास्तविकता कुछ और ही हे।

आज तो गुरुओं की गुरु दक्षिणा इतनी होती हे की जीवन भर की कमाई भी कम पड़ जाए फिर भी इनका पेट नहीं भरता हे।
आश्रमों में परमात्मा के नाम पर मजदूरी करवाते है।
अनको बंधनों और नियमों में चेलों को बांध कर रखते हे।

भक्तो को भी बंधनों में बांध लेते हे। की अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम्हारा वैसा हो जाएगा । तुम्हे नरक में जाना पड़ेगा।
आश्रम का विकाश कराना है इसके लिऐ दान करो और अपने मिलने वालों से भी करवाओ। संस्था का प्रचार करो।
भाव यही होता हे बस समझाने का नियम और तरीके आध्यातम होते हे।

और आज तो ऐसे भी गुरु हे जो अपने एक एक सत्संग के लाखो रुपए ले लेते हे और भक्त जन खुशी खुशी दे भी देते हे
धर्म और दान के नाम पर सत्संग के नाम पर कीर्तन के नाम पर 
जबरदस्त बिजनेस चलता हे । 
और भक्त लोग झूमते हे। 
भक्ति के नाम पर सब कुछ भुला कर। 

और फिर दिन भर सोते हे
थकान के नाम पर।  और उस थकान को भी अनेकों नाम दे देते हे जैसे ये थकान नहीं ये तो  प्रशाद हे , ये तो भक्ति हे, 
ये तो प्रभु पीड़ा।  पता नही जाने क्या क्या।

मिला कुछ भी नहीं मिली तो वह हे थकान
जिसे हम जन्म जन्म से प्राप्त कर ही रहे थे । 

परमात्मा ऐसे नही मिलता हे। 
वो तो प्रयास रहितता से मिलता हे। प्रयास से नहीं। प्रयास में थकान हे 
भटकन हे

वो अमर शांत महा सागर हे उसमे लहरे नहीं उठती हे। 
ने तो विचारो की ने ही भावो की और ने ही दया की और ने ही करुणा की। लहरे नहीं उठती हैं। वो तो पूर्णता से परमथिर हे 


जिसमे लहरे उठती हे और शान्त होती रहती हे  फिर उठती हे फिर शांत हो जाती हे ।
वो अमरता से पूर्ण शान्त नहीं हे।  
वो थिर नहीं हे इस्थिर नहीं हे वो अथिर हे। 
 
कर्ता ही बंधन में बंधा हे।
कर्ता ही कर्म के नियमों में बंधा हे।

सच्ची दया, सच्ची करुणा, सच्ची भावना वो हे जो पूर्णता से समस्त बंधन, समस्त दुख, समस्त तृष्णा, समस्त कर्म को हमेशा हमेशा के लिए मिटा कर पूर्ण शान्त कर दे ।
वही सच्ची दया करुणा भावना होती हे। 

जो एक बार मिल जाए तो मिटती नहीं क्युकी अमर परमात्मा से जो भी मिलता हे वो अमरता से मिलता हे। 
पूर्णता से मिलता हे। अपूर्णता से नहीं।

जिससे कुछ समय काल तक तो दया करूणा भावना मिल जाए और फिर कुछ समय काल के बाद वापस चली जाए तो वो सत्य दया ,करूणा,भावना नहीं हे वह तो लॉली पॉप हे। जो हमने जितनी कमाई और उतनी ही हमे मिली। यह तो हमारे कर्म का फल ही मिला हे। 

और कर्म का फल तो कोई रोक ही नहीं सका तो फिर कैसी दया और कैसी करुणा और कैसी भावना ।

और सत्य पूर्ण परमात्मा को तो निहकर्म होकर प्राप्त किया जाता हे।

समझाने के लिए कहना पड़ता हे उसे कोई प्राप्त नहीं कर सकता हे वो अप्राप्य हे। बस आप वही हो जाते हो जो वो स्वयं हे। क्युकी बूंद मिटी तो सागर हो गई अर्थात बचता वही हे हम मिट जाते हे। इसलिए इस मन को मारना ही सत्य को जानना हे और ये मन मिटता हे आत्मा के गुणों से जुड़ कर। जब आत्म के गुणों से आप जुड़ोगे तब मन गिरता हे उसका जहर गिरता हे।
और आत्म का अमर रस ही इस जहर को पूर्ण शांत करता हे।
और अमर रस सर्वव्याप्त हे। निशुल्क हे। 

लेकिन हमे ऐसा आज तक कोई सत्संग या कीर्तन या गुरु ही नहीं मिला जो हमारी उछल कूद को शान्त कर दे । या फिर हमारी जन्मों जन्मों की थकान को पूर्ण शान्त और संतुष्ट कर सके।

या फिर हमारी जन्मों जन्मों की तृष्णा को मिटा दे। या फिर
हमेशा के लिए हमारे दुख दर्द को मिटा दे। 

चलो ये सब भी स्वीकार कर ले लेकिन क्या जिसे हम अपना इतना कीमती समय दे रहे हे ।

वो और उसका ज्ञान क्या पूर्ण सत्य हे।
इसकी प्रामाणिकता तो हमको ठगने के बाद ही पता चलती हैं।
जब हमारे चार पांच या फिर आठ दस वर्ष हमको नस्ट होते प्रतित होते हे।
जब हमे मुक्ति के नाम पर बंधनों की माला ही मिलती हे। 
और सत्य ज्ञान के नाम पर हमे झूठा ज्ञान ही मिलता हे।

मित्रो गुरु और चेले में कोई अंतर नहीं होता हे।

ये तो बस ज्ञान और विज्ञान का बंधन ही हे की एक भुला हुआ हे और एक ज्ञाता हे । एक पांव दबा रहा हे। और एक सेवा करवा रहा हे । 

बाकी हम सब ज्ञाता ही हे हम सब गुरु ही हे। चेला तो कोई होता ही नहीं हे । हम सब उस परमसुन्य की संतान है उस स्वंभू की संतान हे। उस अहंकारी की संतान हे। उस मोही के अंश हे
उस अपूर्ण सत्य के अंश हे जो मिटता हे और बनता हे और
जो जीता हे और मरता हे

जो बदलता हे अनेक रूपो में । आस्था टूटती हे जब पूर्ण सत्य की परख होती हे। आज हमने कितने भगवान और कितने गुरु खड़े कर लिए ये हम भी नहीं जानते । हम इतने निर्बल हो गए की अब थोड़ा सा भी चमत्कार देख लेते हे तो उसी को भगवान या गुरु की उपाधि दे देते हे। और यह चमत्कार ही हम को दर दर भटकाते हे। कुछ लोग तो बिना चमत्कार को देखे ही भीड़ का हिस्सा बन जाते हे। सुनी सुनाई बातो में आकर बिना सत्य को जाने भीड़ का हिस्सा बन जाते हे। और जितनी ज्यादा भीड़ उतना ही बड़ा भगवान ।

अरे कुछ चमत्कारों को तो एक जादूगर भी कर लेता है।
क्या वो भगवान हे। 
आज विज्ञान ने भी अनको चमत्कार कर दिए हे क्या वो भगवान हे। कुछ सिधिया प्राप्त कर छोटे मोटे चमत्कार कर लेना ही भगवान हे ।

रोड पर अनेकों बाजीगर मिल जाते हे जो कुछ हाथ की सफाई करना जानते हे जो हमारे को चमत्कृत लगते हे।

क्या रटी रटाई पारंपरिक ज्ञान की बातो को बताना।
सत्य गुरु की यही महिमा हे। या फिर उस ज्ञान को ढोना ही हे। ज्ञान अनंत हे । जो जिस ज्ञान तक पहुंचा उसे वही ज्ञान सत्य लगा। ये उनके लिए सत्य भी हे क्युकी वो उससे ज्यादा जान ही नहीं पाए। क्युकी ज्ञान अनंत हे। असीमित हे।
इसीलिए कोई गुरु नहीं कोई चेला नहीं  ।
सब मिटते हे ।

गुरु भी चेला भी। बाकी सब ब्रह्म हे। 
केवल दिखावा हे । केवल स्वप्न हे।
केवल माया हे। केवल सिद्धियां हे 
केवल ज्ञान का आवरण हे।
और ऐसे ही अनंतो आवरण हे।

जो हमारे उपर चढ़े हुऐ हे। ये आवरण कर्म से नहीं हटेंगे
ये तो निहकर्मता से मिटेंगे।

जो सदा सदा के लिए बचा ले वो ही सच्चा गुरु होता हे।
और हमारा सत्य गुरु वो पूर्ण आत्मा ही हे। और उसके ज्ञान को लेने के लिए किसी भी शुल्कता की जरूरत ही नहीं क्युकी वह
तो पूर्ण निशुल्क हे। 

इसलिए मित्रो उस पूर्ण सत्य अजर अमर अविनाशी आत्मा ।
से जुड़ो आपका कल्याण निश्चित ही होगा।


अन्यथा भटकना तो हे ही।  फिर चाहे मनुष्य योनि में भटके या फिर पशु पक्षी की योनियों में  और फिर अनंतो योनियां में ।
निर्णय आपका ही रहेगा। चुनाव भी आपका ही रहेगा। 


मेरा तो निशुल्क विचार हे जिसे अच्छा लगे वो ले जाए।
लेकिन ये विचार भी ऐसे ही संजोय नहीं जाते हे।

इसके लिए भी समर्पण जरूरी हे। उसकी कृपा हुईं और मुझे भी निशुल्क पूर्ण सत्य की परख हुई ।



धन्यवाद 









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