मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

चेतना का पूर्ण मिटाव केसे होता हे।

Great knowledge of soul

मित्रो,
स्थूल सरीर का  जन्म होता हे और वही मरता हे।
सूक्ष्म शरीर बचता हे अपने संस्कार के साथ कर्म को भोगने के लिए अब बात ये हे की ये सूक्ष्म सरिर क्या हे ।
इसे समझने के लिए हमे चेतना के अनंत खौल को जानना पड़ेगा तभी हम अच्छी तरह से समझ सकते हे।

जैसे स्थूल शरीर इस चेतना का खौल हे।
वैसे ही सूक्ष्म शरीर भी चेतना का खौल ही हे। फिर इसके अनंत सूक्ष्म खौल होते हे।
जैसे कारण शरीर,
महाकारण शरीर,
कैवलय शरीर
नूरी शरीर
महा नूरी शरीर
ऐसे अनंतो शरीर हे।
प्रथम जो शरीर हे।
उसे परम सत्य पुरुष कहते। और इसे ही परम चेतना कहते हे।
ऐसे ही स्थूलता में अनंतो शरीर हे।
जैसे कुत्ता,बिल्ली, बंदर,भालू, कबूतर,
चिड़िया अनंत योनियां हे।
ये योनियां ही स्थूल शरीर होते हे।
अब बात ये आती हे की ये सभी योनियां या शरीर
ही मरते हे। चेतना नही मरती हे।
चेतना ने इन सरीरो का आवरण ले रेखा था।
ये ही जल कर राख होते हे। चेतना बचती हे।

मित्रो ये ज्ञान नही हे।
ये समस्त ज्ञान और अज्ञान के पार हे।
ये ही अमर सत्य ज्ञान हे। 
इस ज्ञान को और अधिक जानने के लिए ।
अपना नेम और मोबाइल नंबर सेंड करे।
हमने जो जाना उसकी पूर्ण सत्यता को जानने के लिए
अमर सत्य क्या हे।

चेतना जब मरती नही तो फिर वह कैसे मरती हे । इसे जानना ही तो अमर सत्य को जानना हे।

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अमर सत्य ज्ञान से जुड़े और अपना कल्याण करे।






शुक्रवार, 31 मार्च 2023

अनंतो ढोंग रचाकर मोक्ष की प्राप्ति नही कुछ और ही मिलता हे।

Great knowledge of soul

मित्रो, 
आज हम एक अच्छे विषय पर बात करेंगे।
जो अनंतो ढोंग की पोल खोल देगा।
पूर्ण सत्य जब घटता हे तब पूर्ण ताम झाम खुल जाते है।
ढोंगी बाबाओं के। 

मेने किसी बाबा से पूछा सपने में की बाबा 
आप जप करते हो।
आप तप भी करते हो।
यज्ञ भी करते हो । लेकिन क्यू करते हो । 

कर्म से फल की प्राप्ति होती हे इसलिए करते हे बच्चा।
ये फल हमेशा के लिए तो नही मिलते हे बाबा ।
जितने और जेसे कर्म वैसे ही उतने फल मिलते हे बच्चा।

तो आपका मुख्य लक्ष्य तो मोक्ष ही हे। 

तो फिर इन फलों का आप क्या करोगे ।
कर्म से तो मोक्ष नही मिलता हे बाबा। 
मोक्ष के लिए तो सब कुछ छोड़ना पड़ता हे।
फिर इन कर्मो को क्यू करते हो।

या फिर ये सब दिखावटी ही हे।

कोनसे  ढोंग दिखावटी हे बच्चा ।

आप जैसे अनंतो प्रकार के तिलक लगा लेते हो ।
भगवा झोला पहन लेते हो।
गले में अनंतो मालाये डाल लेते हो।
बड़े बड़े बाल और दाढ़ी और ये कमंडल किसलिए।
मोक्ष के लिए ।


कुछ पाने के लिए ये सब जरूरी हे क्या
कर्म करो और अपना फल प्राप्त करो। बात समाप्त
इतनी रचना किसलिऐ।
बिना रचना के कर्म फल नही मिलता हे क्या।

ये ढोंग किसलिये दिखाते हो। की आप स्पेशल हो।
आप ही भक्त हे और आप ही प्रभु। आप हि साधु संत 
और आप ही तपस्वी हे । 
बच्चा ये ढोंग रचाने से ही लोगो को कुछ दिखता हे।

अरे भाई ढोंग नहीं दिखाएंगे तो कोन मानेगा की हम साधु या संत हे।
अच्छा तो आप ये ढोंग दिखाने के लिए करते हो। 
आपको भगवान से कुछ प्राप्त नहीं करना हे ।

अरे भाई दिखाने से ही मिलता हे। वैसे तो कोन देता हे।
अच्छा तो कुल मिलाकर दिखाने से ही मिलता है। 
कर्म फल कुछ नहीं हे। 

अरे नही भाई जनता से लेने के लिए दिखावा जरूरी हे।
और भगवान से लेने के लिए जप तप व्रत और यज्ञ को करना जरूरी है। दोनो विधि अलग हे।

अच्छा तो आप दोनों विधि से लेने के लिए ऐसा करते हो।

अरे नही भाई देखो,और सुनो।
जप तप और व्रत और यज्ञ से जब मिलेगा तब मिलेगा।
लेकिन अभी फिलहाल तो इन ढोंगो से ही पेट पालना हे।

लेकिन बाबा मेहनत से भी तो पेट पल सकता हे।

देखो बच्चा ये अपना अपना बिजनेस हे। कोई केसे पेट पालता हे कोइ केसे ।
अब हम इतने पढ़े लिखे तो हे नही की किसी की नौकरी कर के अपना पेट पाल ले ।
इसीलिए बच्चा मजबूरी का नाम महात्मा गांधी हे ।

अच्छा तो कुल मिलाकर ये ढोंग पेट के लिए हे।

हा बच्चा, 
लेकिन बाबा जब आपको जप तप और ध्यान और व्रत और यज्ञ और तपस्या का फल मिलेगा तब उसका क्या करोगे ।

बच्चा लोगो का कल्याण ही करेंगे और क्या करेंगे ।

कल्याण करेंगे तो लोगो की भीड़ आयेगी और भीड़ आयेगी 
तब तो तुम्हारी दान पेटी ओवर फ्लो हो जायेगी ।

फिर तो तुम्हारी भी जय और भगवान की भी जय।

और फिर आश्रम बनाकर भक्तो को ज्ञान देंगे। और ज्ञान दान के साथ साथ कुछ सेवा करेंगे और कुछ सेवा करवा भी लेंगे।
और ज्ञान देकर फिर गुरु दक्षिणा भी ले लेंगे।
इससे भक्तो पर किसी भी प्रकार का भार नही पड़ेगा ।
अब समझे बच्चा।
मेने ने कहा बाबा आपने तो एमबीए वालो को भी फेल कर दिया।
नहीं बालक हम तो बस प्रभु का नाम लेते हैं। 
और अपना जीवन यापन भी कर लेते  हे । 
और हमें क्या चाहिए बच्चा ।

मेने कहा बाबा आप तो धन्य हे।
बाबा ने कहा बच्चा धन्य तो वो परमात्मा हे ।
हम तो बस उसकी एक झलक हे।

मेने कहा अच्छा बाबा एक बात बताओ।
बाबा ने कहा पूछो बच्चा ।

हम जो कर्म करते हे, उसका फल भगवान हमे दे भी देते हे।

तो बाबा अनंतो कर्म हे और अनंतो ही फल ।
जैसा कर्म वैसा ही फल ।

तो बाबा आप मुझे मोक्ष का कोनसा कर्म हे उसे बताए।
बाबा ने कहा बच्चे इसके लिए आपको 
सब कुछ छोड़ना पड़ेगा । मेने कहा बाबा में सब कुछ छोड़ दूंगा लेकिन बाबा जब सब कुछ कर्म से ही मिलता हे ।
तो कोई यज्ञ या जप तप या कोई व्रत बताओ ।

बच्चा इसमें सब कुछ मिटाना और छोड़ना पड़ता है।
इसकी प्राप्ति के लिऐ ही तो मैंने अपना सब कुछ छोड़ दिया और जंगल में आकर रह रहा हु ।

 मेने कहा बाबा  फिर ये जप तप और यज्ञ क्यू करते हो।
जब मोक्ष के लिए सब कुछ छोड़ना ही है। 
तो इनको भी छोड़ दो ।
फिर क्यों बे वजह आप इन फालतू कर्म को करते हो।
इनको करोगे तो इनके फल भी मिलेंगे। 
और फल निश्चित मिलेगा ये तो प्रकृति का नियम हे ।
लेकिन कब मिलेगा ये निश्चित नही हे ।
फिर तो आपको इन फलों का इन्तजार ही करना पड़ेगा।
और इन्तजार करते करते ने जाने कब दी एंड हो जाए। और दी एंड होने के बाद तो दूसरा जन्म ही मिलता हे।
और दूसरे जन्म में हम पिछले जन्म का किया भूल जाते हे।
फिर तो जो मिलेगा उसे भुगतना ही पड़ेगा।
अब बच्चा आने वाले जन्म को कोन देख रहा हे। जो हो रहा हे 
वो अच्छा ही हो रहा हे।
और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा ।
फिर मैने बाबा से कहा बाबा फिर तो बिलकुल भी कर्म नही करने चाहिए ।
क्युकी जो होना हे वो अच्छा ही होगा तो फिर ये ताम झाम
करने की क्या जरूरत  हे।
बाबा अंतर्ध्यान हो गए । और मेरी भी आंख खुल गई।
असली बात ये है।
हम भोले भाले लोग बे वजह ऐसे ढोंगियों के चक्कर मे आ जाते हे। और अपना कीमती समय भी खराब भी करते हे अन्त में कुछ भी नही मिलता हे।
सब नाशवान हे। इस सृष्टि में। कुछ भी  हमेशा के लिए नही रहता हे।  हम इनकी प्राप्ति के लिए व्यर्थ कर्म करते हे।
जो अमर धन हे उसे कोई प्राप्त नही करता हे।








































 










गुरुवार, 30 मार्च 2023

आत्मिक निशुल्कता और तात्विक निशुल्कता में क्या अंतर हे।

Great knowledge of soul 


 मित्रो,
 पूरा लेख पढ़ लोगे तब भी कुछ समझ नही आयेगा क्युकी ये सहज और सरल ज्ञान हे ।और हमे आदत हे असहज होकर हर काम को करने की या फिर हमने आज तक ये ही जाना हे की परमात्मा ही क्या इस जगत की कोई भी चीज अधिक से अधिक प्रयास करने से ही मिलती हे ।

जैसे जप करो तो भगवान मिलेगा
तप करो तो.............
व्रत करो तो भगवान कुछ देगा।
समाधि लगा लो भगवान मिलेगा।
मतलब तुम से पहले भगवान को चाहिए ।
जब वो संतुष्ट हो जायेगा तब तुमको देगा।

इसीलिए ये निशुल्कता वाली बाते हमे समझ में नही आयेगी। 

आज हम आत्मिक निशुल्कता और तात्विक निशुल्कता  पर बात करेंगे।

आत्मिक निशुल्कता सर्वव्याप्त हे और तात्विक निशुल्कता केवल व्याप्त हे।
आत्मिक निशुल्कता सहज और सरल हे। इसको लेने के लिए कोई प्रयास नहीं करने पड़ते हे। वो प्रयास रहित हे।

तात्विक निशुल्कता को प्राप्त करने के लिए प्रयास की जरूरत पड़ती हे। इसको लेने के लिए आना जाना ही पड़ता  हे।

अब हम इसको सरलता से समझते हे ।

देखो, 
मित्रों आत्मित निशुल्कता सर्वव्याप्त हे इसीलिए
इसको लेने के लिए हम कहा जाए ।

कही आने जाने की जरूरत ही नही पड़ती हे। 
जहा हे वही प्राप्त हो जायेगी।
परम निशुल्कता से इसके लिए कोई शुल्क नही देना पड़ता हे।

तात्विक निशुल्कता व्याप्त हे। तो इसको लेने के लिए
आना जाना तो पड़ेगा। क्युकी ये सभी जगह नही हे ।
जैसे सूर्य की रोशनी बंद कमरों में नही हे या जैसे किसी गुफा में सूर्य की रोशनी नही हे तो उसे लेने के लिए बाहर आना जाना तो पड़ेगा तभी तो सूर्य कि धूप या रोशनी हमे मिलेगी। जल भी कही पर हे तो कही पर नही हे।
इसे लेने के लिए इधर उधर आना जाना तो पड़ेगा।
सूर्य का जो ताप हे वो भी समान नही हे। कही ज्यादा और कही कम होता हे दूरी के हिसाब से।
लेकिन आत्मा सम सर्वव्यापी हे वह अनंतो श्रृष्टियो में सभी स्थान पर समान हे। जेसी निकटतम पर हे ।
दूरतम पर भी वैसी ही हे कोई बदलाव नहीं हे।

जैसे ऑक्सीजन कही पर हे और कही पर नही हे और कही पर कम हो जाती हे। 

जैसे अग्नि कही पर हे और कही पर नही। जहा ऑक्सीजन हे वहा अग्नि जल सकती हे और जहा ऑक्सीजन नही वहा अग्नि
जल नही सकती हे। बुझ जायेगी। अर्थात इसे भी लेने के लिए प्रयास करने पड़ते हे।

इसलिए पूर्ण निशुल्क आत्मिक हे। तात्विकता नही।

अनंतो उदाहरण हे अब में आपको समस्त exampal तो नही दे सकता हु ।
इतना ने तो आपके पास समय हे।और ने ही मेरे पास ।

देखो, 
तात्विक निशुल्कता चेंज होती रहती हे।
और आत्मिक निशुल्कता चेंज नही होती हे।
वो जस की तस ही रहती हे। पूर्ण अटलता के साथ।
इसीलिए आत्मिक निशुल्कता समय की मोहताज नही हे।
समय के बंधन में नही हे ।

और तात्विक निशुल्कता को समय के बंधन में रह कर।
निशुल्कता देने के लिए बाध्य हे। इन्हे प्रकृति के नियमो में चलना ही पड़ता हे। ये मुक्त नही हे।

और जो स्वयं मुक्त नही हे वो हमे क्या मुक्त करवाएंगे।
जो स्वयं हर चीज का शुल्क लेते हे ।

कृपा का शुल्क।

दया का शुल्क ।

करुणा का शुल्क।

तप का शुल्क ।

जप का शुल्क ।

धन का शुल्क ।

धर्म का शुल्क ।

विचारो का शुल्क ।

समय का शुल्क ।

अन्न का शुल्क ।

इच्छाओं का शुल्क।

फिर ये पूर्ण निशुल्क केसे हो सकते हे। हां ये कुछ समय के लिए हमे निशुल्क मिल सकते हे। 

मित्रो पूर्ण सत्य कभी नास्तिक नही हो सकता हे।
वो तो नास्तिक और आस्तिक दोनो से पूर्ण मुक्त हे।

आत्मिकता निहतत्व में हे और तात्विकता तत्व और अतत्व  में हे।
और निहतत्व तत्व और अतत्व दोनो मे हे। 
और दोनो के पार भी हे।

और तात्विकता तत्व और अतत्व में ही रमता हे ।
तात्विकता तत्व में चेतन अवस्था में और अतत्व में अचेतन अवस्था में रहता हे।

मित्रो ये केवल ज्ञान नही हे। ये पूर्ण सत्य ज्ञान हे। ये आपकी एक एक नश खोल कर रख देगा । 
ये पूर्ण आध्यात्मिक और आत्मिक ज्ञान हे।

इसे मजाक मत समझना अन्यथा आप स्वयं मजाक बन जायेगे इस तात्विकता के जाल में उलज कर ।

धन्यवाद 













बुधवार, 29 मार्च 2023

स्थूल गर्भ और सूक्ष्म गर्भ में क्या अंतर हे।

Great knowledge of soul

मित्रो,

आज का विषय अत्यंत महत्वपूर्ण हे।
ये विषय आपके अनंत रूढ़िवादी विचारो को तोड़ कर रख देगा।

जो ये कहते हे की में किसी गर्भ से नहीं आया वो भी किसी न किसी गर्भ से ही आया हे। 

क्योंकि अनंत सूक्ष्म शरीर होते हे और जो जितनी सूक्ष्मता से जितनी स्थूलता में आता हे वो किसी प्रक्रिया के तहत ही स्थूलता में आता हे।


कुछ वस्तु अदृश्य होती हे और वह अदृश्य वस्तु अनंत
सूक्ष्मता को धारण किए होती हे।
 


अब विषय ये हे की स्थूल गर्भ और सूक्ष्म गर्भ में अंतर क्या हे।

अब आप मुझे बताओ की आपका जन्म स्थूल गर्भ से हुआ या फिर सुक्ष्म गर्भ से। 
आप कहोगे की स्थूल गर्भ से मतलब मां के पेट से ।

तो मित्रो ये जन्म हमारा प्रथम जन्म हे या आखरी जन्म।

बाते बहुत हे क्युकी ज्ञान भी अनंत हे।

तो मित्रो आपका प्रथम जन्म परमचेतना से हुआ।
जो अति सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म हे।

परम चेतना से फिर नीचे के स्तर में चेतना का जन्म होता हे।
क्युकी चेतना गिरती हे। उच्चता से निम्नता की और ।

परमचेतना से चेतना का जन्म हुआ। 

और फिर चेतना जन्म लेती और मरती हुई ।
फिर जन्म लेते लेते हम स्थूलता में आ गए।
तब स्थूलता में हमारा जन्म हमारी मां के गर्भ से हुआ।

अब ये प्रक्रिया हे। और ये प्रक्रिया।
सूक्ष्म स्तर और स्थूल स्तर पर अलग अलग होती हे । 

जितनी ज्यादा सूक्ष्मता उतनी ही ज्यादा सुक्ष्म प्रक्रिया।
और जितनी ज्यादा स्थूलता उतनी जटिल स्थूल प्रक्रिया।

प्रक्रियाओ में हमे नही जाना हे। क्युकी प्रक्रिया भी अनंत हे।
यहां हम आत्म ज्ञान की बात करेंगे।

मित्रो 
सूक्ष्म गर्भ भी अनंत होते हे। क्युकी सूक्ष्म शरीर भी अनंत हे 
स्थूल गर्भ भी अनंत होते हे। क्युकी स्थूल शरीर भी अनंत हे।
 
शब्द की उत्पत्ति असब्द से हुई।
धुन की उत्पत्ति अधुन से हुई हे।
ज्ञान की उत्पत्ति अज्ञान से हुई।
देह की उत्पत्ति अदेह से हुई।
प्रकाश की उत्पत्ति अंधकार से हुई।
स्थूल शरीर की उत्पत्ति सूक्ष्म शरीर से हुई।

लेकिन अब आप से कोई ये कहे की ये तो कही से प्रगट हुऐ हे।

तो तुरंत समझ जाना की ये किसी अति सूक्ष्म गर्भ से ही आए हे


और आत्मा को कही भी आने और जाने की जरूरत नही हे।
जो सर्वव्याप्त हे उसे कही भी आने जाने की जरूरत नही हे।

वो जन्म ही नही लेती हे।
क्युकी वो अजन्मा हे अजन्मा।

इसीलिए वो अजर अमर अविनाशी हे ।

जो जन्म लेता हे उसे मरना पड़ता हे।

और जो भी कही से प्रगट हुऐ हे वह अपने लोक का ज्ञान देकर
चले जाते हे ।अपने लोक में ले जाने के कारण। और अपने लॉक से ऊपर के लॉक का ज्ञान ने होने के कारण।

लेकिन अब आपको परख मिल गई हे अब आपको कोई भी नही भटका सकता हे।
 
और कोई अब भी भटकना चाहता हे। तो मित्रो ।
मेरा अनुरोध हे की आप इस ज्ञान को आज ही छोड़ दे।

अपना समय बर्बाद नही करे।
आपको जैसा सही लगे वैसा वैसा ज्ञान ले ।

आप स्वंत्र हे।
जिस को प्यास लगती हे वो पानी के पास अपने आप चला जाता हे। 

धन्यवाद 






















































मंगलवार, 28 मार्च 2023

सूक्ष्म कर्म और स्थूल कर्म में अंतर

Great knowledge of soul

मित्रो
आज हम सूक्ष्म और स्थूल कर्म को जानेंगे।
हम जिन कर्मो को करते हे उनको भी और जिन कर्मो को अनजाने में करते हे उनको भी जानेगे। लेकिन कर्म हमको करने ही पड़ते हे। बिना कर्म किए हम रह ही नही सकते हे। 
ये अनंतो प्रकृतियो का बहाव ही हे जिसमे हमको बहना ही पड़ता हे। 

कर्म बहाव ही हे। और ये बहाव फिक्स हे।
इसलिए कर्म भी फिक्स हे।

भविष्य में क्या होगा और कब होगा केसे होगा और क्यू होगा।
ये बताना क्या कर्मो का फिक्स होना साबित नही करता हे ।

जब हमारा भविष्य फिक्स हे ।
तो वर्तमान फिक्स नही होगा ।

भविष्य में जो होगा उसी की पूर्ति हम वर्तमान में करते हे।
कि जब हम वर्तमान में ये करेंगे तब भविष्य में ये घटना घटित होगी। 

और किन किन घटनाओं में बदलाव होगा किस में नहीं ये भी
फिक्स हे।

इसको जानने के लिए आत्म समझ होनी चहिए क्युकी आत्मा ही आपके अनंतो आने वाले भविष्य की घटनाओं को जानती हे। वो जानन हार हे वो सब जानता हे आपके अगले, पिछले समस्त कर्मो को । 

अब प्रश्न ये उठता हे । हमारे आलस्य मन में की हम मेहनत ही क्यों करे।

जब समस्त कर्म फिक्स हे तो हम कर्म ही क्यों करे।

समस्त कर्मो का फल भी निश्चित हे। 
अर्थात कर्म भी फिक्स और उनका फल भी फिक्स
फिर तो मौज ही मौज हे।


जो होना हे वो होकर ही रहेगा फिर हम टांग क्यू लगाए।

ऐसे विचार अक्सर हम बुद्धि जीवो में आ ही जाते हे।

क्योंकि आलस्य के लिए तो हम अनंत उपाय ढूंढ ही लेते हे।
 
ये ज्ञान निशुल्क हे लेकिन कुछ बाते अपने मृत विवेक से भी  जाननी चाहिए।
जब सब कुछ फिक्स हे। तो हम कर्म क्यू करे।

टिप्पणी  सेक्शन को क्लिक करे । और नीचे लिखे और बताए
जो बता सकते हे। वो ही बताए ।

अन्येथा शान्त रहे और आत्म ज्ञान लेते रहे। 
सहजता से सरलता से निशुल्कता से ।

टिप्पणी विषय से संबंधित होनी चाहिए । 

आध्यात्मिक होनी चाहिए । 

अन्यथा आपको भविष्य में आत्म ज्ञान नही मिलेगा।
इस चैनल के द्वारा।

धन्यवाद 













अमर जीवन और मृत जीवन में क्या अंतर है।

Great knowledge of soul 

मित्रो,

ये विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। कि जीवन भी मृत होता हे।
और पूर्ण जीवन अमरता से ही मिलता हे। 

और मृत जीवन मृत विवेक ही होता हे।
और अमर जीवन अमर विवेक ही होता हे।

मृत जीवन अज्ञानता का प्रतीक हे।
और अमर जीवन ही पूर्ण ज्ञान हे।

और आत्मा ही अमर जीवन हे अर्थात आत्मा ही अमर हे 

हम जो जीवन जीते हे।
वो मृत जीवन ही जीते हे।

मृत जीवन से तात्पर्य अधूरा जीवन जो ने तो पूर्णता से मरता हे। और ने ही पूर्णता से जीता हे। 

मृत जीवन का मतलब अज्ञानता का जीवन।
मृत जीवन का मतलब पूर्ण असत्य का जीवन।
मृत जीवन का तात्पर्य पूर्ण परतंत्रता का जीवन जिसमे हम पूर्ण स्वतंत्र नही हे।

और ये मृत जीवन भी उस अमर जीवन के आधार से ही जीवित हे ।
अगर वो अमर जीवन न हो तो हम सब मृत
ही हे। 
उसी की कृपा हे की हम सब मृत होते हुऐ भी जीवित हे।

परमचेतना परमसुन्य के आधार से जीवित हे।
और परमसुन्य पूर्ण परमात्मा के आधार से । आत्मा परमात्मा दोनो एक ही हे। क्युकी पूर्ण अमर दो नहीं हो सकते हे।

दो ही धारा हे ।
एक पूर्ण सत्य और एक पूर्ण असत्य ।

पूर्ण असत्य ने अपने आपको
अर्द्ध सत्य+अर्द्ध असत्य में  विभाजित कर रखा हे।
अर्द्ध ज्ञान+अर्द्ध अज्ञान में विभाजित कर रखा हे।
इसलिए अज्ञानता से और अहंकार से जो मिलता हे वो
माया ही हे। असत्य ही होता हे।
यही माया हे। और इसी माया ने हम सबको भ्रमित कर रखा है।

और पूर्ण सत्य की धारा पूर्णता से अपरिवर्तित हे।  अटलता से परमथिर हे। पूर्णता से सर्वव्याप्त हे।  
कण में भी और अकण में भी ।

और हम सब और अनंत श्रृष्टि उस अगाध,अथाह, अपार, अमर
पूर्ण शांत महासागर में ऐसे जीवन जी रहे हे। 
जैसे जल में मछली और जल में जीने वाले जीव अपना जीवन जीते हे । जल कभी भी उनके जीवन में अवरोध खड़ा नहीं करता हे। वैसे ही परमात्मा अखिल अनंत ब्रह्मांड में । कभी कोई अवरोध उत्पन नही करता हे। इसलिए वो अकर्ता हे। 

मित्रो
ये ज्ञान हर किसी के समझ में नहीं आता हे ।
इस ज्ञान को वो ही समझ पाता हे जिस पर उसकी कृपा हो।

ये ज्ञान देखने, सुनने, और पढ़ने से भी समझने में नहीं आएगा।
क्युकी इसके लिए पूर्ण समर्पण होना चहिए। 
और आत्मा की पूर्ण कृपा होनी चाहिए। उसकी कृपा सब को मिली हुई ही हे बस हमे सहज होना हे। 

अखंड विश्वास उस अजर अमर परमात्मा में ।

फिर वो आपके लिए समस्त अज्ञात दरवाजे खोल देता है।
अनंत अकुट खजाने का मालिक आपको बना देता हे। वो फिर असंभव को संभव कर देता हे। 

जिसे परमचेतना ने आज तक उन दरवाजों को छुआ भी नही हे। जिस तक पहुंचने की वह अनंतो युगों से कोशिश ही कर रही हे। तरस रही हे। और नित्य प्रयासरत हे।


धन्यवाद 















परिवर्तनशील सत्ता और अपरिवर्तनशील सत्ता में क्या अंतर हे।

Great knowledge of soul

मित्रो

परिवर्तनशील और अपरिवर्तनशील सत्ता में अनंतो अंतर हे।
लेकिन आज हम कुछ महत्वपूर्ण अंतरों को जानेंगे।

परिवर्तनशील सत्ता एक चक्र में कार्य करती हे।
और ये समय के साथ परिवर्तित होती रहती हे।

इस समस्त जगत की प्रत्येक वस्तु या जीव या फिर
जीव जंतु या फिर समस्त श्रृष्टि परिवर्तित चक्र का हिस्सा ही हे।
जिसे हम निर्जीव समझते हे वह भी परिवर्तित हे।

समय का अंतर हे कि कुछ चीजे कुछ अंतराल पर परिवर्तित
हो जाती हे और कुछ लम्बे समय के बाद परिवर्तित होती हे।
लेकिन परिवर्तित जरूर होती हे।

इस समस्त जगत की अनंतो सुक्ष्म वस्तुएं और अनंतो स्थूल वस्तुएं परिवर्तनशील ही हे।

जैसे जल, वायु, सूर्य,चंद्र  अग्नी, पेड़ पौधे, जीव जंतु , विचार , सुख,दुख, तारे, और अनंतो ब्रह्माण्ड 
भाव, क्रोध ,शांति,लोभ,करुणा, स्वप्न, आदि अनंतो 

शब्द बदलते हे अशब्द में ।
दिन परिवर्तित होते हे रात में।
और रात परिवर्तित होती हे दिन मे।

ऋतुएं भी परिवर्तित होती रहती हे।
मन भी बदलता हे।
विस्वास भी बदलता हे।

और प्रकाश परिवर्तित होता हे अंधकार में।
और अंधकार परिवर्तित होता हे प्रकाश में।

और अज्ञान परिवर्तित होता हे ज्ञान में।
और ज्ञान परिवर्तित होता हे अज्ञान में।

समस्त सत्ताओं को परिवर्तित होना ही पड़ता हे। सुन्य में 
और सुन्य भी परिवर्तीत होता हे परम चेतनाओं में।
और परम चेतना परिवर्तीत होती हे परमसुन्य में ।

और फिर अनंतो युगों बाद परमसुन्य से परम चेतनाए जन्म लेती हे सृष्टि रचना के लिए । 

और फिर ये अनंतो ताम झाम हमे नजर आते हे।। 
जो हमे दिखाई दे रहे हे इस संसार में। और कुछ जो अदृश्य हे 


कुछ बदलाव हम देख पाते हे ।
और कुछ बदलाव हम देख नहीं पाते हे।

क्युकी कुछ बदलाव सुक्ष्मता में होते हे ।
और कुछ बदलाव स्थूलता मे।
लेकिन परिवर्तन होते जरूर हे। 

और ये जन्म मरण क्या हे ये भी परिवर्तन ही हे।
हम मरते हे और जन्म लेते हे।

अब मरने के बाद हम किस में परिवर्तित होते हे।
ये अपने अपने कर्मो पर निर्भर करता हे।

और कर्म का फल निर्धारित हे वो मिलता ही हे।
ये फिक्स नही हे की कब किस कर्म का फल कब मिलेगा।
लेकिन मिलता जरूर हे।


अब बात करते हे अपरिवर्तन शील सत्ता की तो सबसे पहले 
में आपको बता देता हु की ये अविनाशी सत्ता हे इसमें कभी
किसी काल या समय में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता हे।
ये जस की तस रहती हे।

ये अखंडित हे।
ये अचल हे।
ये पूर्ण परमथिर हे अर्थात एक दम रुकी हुई । 
ये चलती नहीं हे। ये अचल हे।

ये पारदर्शी हे ।
ये निर्लेप्त हे।
ये अलख हे।

ये निरछूत हे इसे कोई छू नही सकता हे। ने तो अनुभव से
और ने ही कल्पनाओं से । 
ये कल्पना अतीत हे।
इसे कोई कल्पनाओं से भी नही जान सकता हे।

ये इन्द्रिया अतीत हे जो समस्त इंद्रियों के पार हे। 

इसलिए मित्रो 

उस निश्चिंत से जुड़ो।
वो आपकी समस्त चिंताओं का निवारण सहजता से समाप्त कर देगा।

ये ज्ञान आपको कही नही मिलेगा । 
ने तो पोथी पन्नो में ।
ने ही धर्म ग्रंथो मे। 
ज्ञान अनंत हे।

और इन अनंत ज्ञान में आप उलझ कर रह जाओगे।
आत्म ज्ञान सहज और सरल हे। इसलिए इससे जुडोगे तो
आपके तन मन को पूर्ण शांति मिलेगी।
और अनंत अपार अमर धन को प्राप्त करोगे।

धन्यवाद 














सोमवार, 27 मार्च 2023

ज्ञान और अज्ञान में अंतर क्या हे

Great knowledge of soul

मित्रो ,

आज हम एक अच्छे विषय पर बात कर रहे हे ।
ये विषय अहंकारीयो के अहंकार को मिटाएगा।

देखो मित्रो ,

ज्ञान असीमित हे अनंत हे। इसकी कोई सीमा नहीं हे।
लेकिन अज्ञान भी असीमित और अनंत ही हे ।

अब में आप लोगो से पूछना चाहता हु। कि ज्ञान और अज्ञानता 
में बड़ा कोन हे।


बताओ । 




















चलो में ही बता देता हु। वैसे यह विषय बड़ा ही गूढ हे। 

मित्रो,


अज्ञानता ही ज्ञान से बड़ा हे। वो केसे इसे समझना
पड़ेगा तभी तो हम पूर्ण सत्य से असत्य की परख करेंगे।
परख हमेशा असत्य की होती हे ।  

और वो ज्ञान भी ज्ञान नही हे जो
पूर्ण नहीं हे ।

और अधूरे ज्ञान का जन्म होता ही हे। अज्ञानता से । 

और पूर्ण सत्य को केवल पूर्ण सत्य होकर ही ।
पाया जा सकता हे।

असत्य पूर्ण सत्य को कभी प्राप्त ही नहीं कर सकता है।
लेकिन मिट सकता हे। फिर बचता पूर्ण सत्य ही हे।

ज्ञान कितना भी प्राप्त करले हम फिर भी अज्ञानी ही रहते हे।
और हर अज्ञानी को ज्ञान की जरूरत होती हे।

लेकिन हम रहते अज्ञानी के अज्ञानी ही ।

क्युकी हमारा जन्म ही परमसुन्य से हुआ हे।
और परमसुन्य ही अहंकारी हे ।

ये परमात्मा से विमुख हुआ और विमुख होकर गिरता गिरता
अनेक परिवर्तन करता करता हुआ अनेक श्रृष्टियो का निर्माण करता हुआ अनंत योनियों में अनंत योनियां धारण करता हुआ।

अनंत सुक्ष्मता से अनंत स्थूलता की और एक चक्र में भ्रमण करता हुआ वापिस परम सुन्य में समा जाता हे।

इसे ही जन्म मरण का चक्र कहते हे।
और ये अनंतो युगों का होता हे।
ये पूर्ण ब्लैक होल होता हे।

जो अनंतो युगों बाद पूरी श्रृष्टि को निगल जाता हे।
ये ही संसार का निर्माण कर्ता हे। और ये ही विनाशक हे।

अब हमारे दिल और दिमाग में एक प्रश्न उत्पन्न होता हे।
की फिर तो ये ही परमात्मा हे।
लेकिन ये परमात्मा नहीं हे।

क्युकी पूर्ण ज्ञान तो पूर्ण आत्मा को ही होता हे। 
या फिर उसकी कृपा जिस बिडले पर हो जाए 
उसको ये पूर्ण ज्ञान निशुल्क मिल ही जाता हे।

लेकिन ये जरूरी नहीं की पूर्ण सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के
बाद वह पूर्ण आत्मा को प्राप्त ही करे । 

क्युकी इसके लिऐ मिटना पड़ता हे ।

असत्य को पूर्णता से।

धन्यवाद 









 









समाधि के फायदे और नुकसान क्या क्या हे,

Great knowledge of soul

मित्रो

 आज हम बात करेंगे समाधि से क्या फायदे और नुकसान मिलते हे। समाधि की शुरुवात सबसे पहले ध्यान से शुरू होती हे। और ध्यान एक सुक्ष्म यात्रा ही हे । 

ये यात्रा पहुंचती पहुंचती सुन्य तक जाती हे। और फिर सुन्य से अनंतो सुन्य तक जाती हे और फिर सुन्य से परमचेतनय तक जाती हे और फिर परम चेतन्य से परमसुन्य में जाकर अचेतन अवस्था को प्राप्त होती हे।अगर कोई पूर्ण समाधी में लीन हे तो जैसे महात्मा बुद्ध ने सुन्य तक की यात्रा की 


जो समाधी में लीन हे उसको अनेकों लोभ में प्रकृति लुभाती हे
अनेकों सिधियो के लालच मे लुभाती हे।
जो इन लालचो में आ जाता हे उसकी यात्रा वही समाप्त हो जाती हे और वो सिधिया भी कुछ नियमों में बंधी होती हे।
और सादक को उन नियमों का पालन करना ही पड़ता हे।
अन्यथा वो गायब हो जाती हे। और सादक का समय बर्बाद हो ही जाता हे।

और जो सादक इनके लालच में नहीं आता हे। वह अपनी यात्रा
में नित्य आगे बढ़ता रहता हे।

लेकिन क्या ये यात्रा हमे पूर्ण सत्य की प्राप्ति करवाती हे ।
वो अजर अमरता क्या किसी यात्रा से मिलेगी । बिलकुल भी नहीं क्युकी पूर्ण सत्य की कोई यात्रा ही नहीं होती हे। वो प्रयास से मिलता ही नही हे। वो तो प्रयासरहितता से प्राप्त होता हे।

और ध्यान में तो प्रयास ही होता हे ।
हम परमसुन्य से ही तो आए हे और फिर वही जाना चाहते हे।
और फिर वहा से गिरते गिरते अनंत सूक्ष्मता से अनंत स्थूलता की और ये चढ़ना और उतरना ही लगा रहता हे।
और हमारे अनंतो युग इस उतार और चढ़ाव में ही लग जाते हे
परिणाम सुन्य ही आता हे।

इनसे मुक्ति पाना असम्भव हे। केवल अजर अमर आत्मा ही हमें
इन बंधनो से मुक्त कर सकती हे। वो ही असंभव को संभव कर सकता हे । 

इसलिए उस सत्य परमात्मा से निरन्तर जुड़ो । 

उस पत्ते की तरह जो पानी के बहाव से बहता हे।
उस पानी में पत्ते की कोई मर्जी नहीं होती हे।
वह तो केवल पानी के बहाव को जानता हे।
जहा पानी का बहाव ले जाए जैसे ले जाए।
वैसे बहना ही  प्रयासरहितता कहलाता हे।

मित्रो ये ज्ञान नहीं हे । ये समस्त ज्ञान और अज्ञान को मिटाने का सहज और सरल मार्ग हे। 
तो मित्रो समाधी से कोई फायदा नही हे। केवल नुकसान ही हे समय का और जीवन का 
जीवन का इसलिए क्योंकि जो फायदे हमने प्रकृति के नियमो को तोड़ कर प्राप्त किए उनका भुगतान भी हमे करना पड़ता हे।
उन सिद्धियो से जो सुख और आनंद और प्रसिद्धि हमने प्राप्त की उनका भुगतान हमे करना ही पड़ता हे। इसलिए मित्रो उस 
निरआनंद से जुड़ो। उस निर्मोही से जुड़ो।
उस कल्पना अतित से जुड़ो। 
उस अपार, अगाद  से जुड़ो।
उस निर्भय से जुड़ो।
वो आपके सारे भय और अभय को मिटा देगा।
एक पल के भी सौवे हिस्से से भी कम समय में
आपके दुख, दर्द, पीड़ा, को पूर्ण मिटा देगा।

वो ही आपके जीवन को सहज सुगम और सरल बनायेगा।

धन्यवाद 






शनिवार, 25 मार्च 2023

गुरु और चेले में क्या अंतर हे और इस अन्तर की सत्यता क्या हे।

 Great knowledge of soul


मित्रो आज का विषय बहुत ही सुन्दर है। ये हमारी अनंतो अज्ञानताओ को तो समाप्त करेगा ही साथ में इन गुरुओ के मकड़ जाल से छुड़ाने में भी मदद करेगा।

तो फिर चलते हे अपने लेख की और 
गुरू और चेले में क्या अंतर हे।

गुरु वही जो सत्य मार्गदर्शक बने हमारे अध्यात्म मार्ग का
और निशुल्क हो उसके दर्शन और निशुल्क हो उसका ज्ञान
और निशुल्क हो उसका मार्गदर्शन। 

और उसका प्रत्येक कर्म निशुल्क हो।

समस्त इच्छाओं से समस्त वासनाओं से पूर्ण मुक्त हो।

और पद प्रतिष्ठा का ने तो अभिमान हो। और न ही स्वाभिमान
उसके दर पर गरीब और अमीर का कोई भेदभाव ने हो।
और उसकी नजरो में सब समान हो । 

क्या गुरुओं को इतने बड़े बड़े आश्रमों की आवस्कताओ की जरूरत हे। सत्य का मार्गदर्शक बनने के लिए।

क्या आश्रमों का विकाश और निर्माण कराकर ही 
सत्य मिलता हे। 

क्या गुरु दक्षिणा से ही सत्य मिलता हे।

जो पापी को भी सत्य मार्ग पर चला सके। और धर्मात्मा बना दे।
ऐसी समर्थता ही तो सत्य गुरु की पहचान कराती हे।
लेकिन आज वास्तविकता कुछ और ही हे।

आज तो गुरुओं की गुरु दक्षिणा इतनी होती हे की जीवन भर की कमाई भी कम पड़ जाए फिर भी इनका पेट नहीं भरता हे।
आश्रमों में परमात्मा के नाम पर मजदूरी करवाते है।
अनको बंधनों और नियमों में चेलों को बांध कर रखते हे।

भक्तो को भी बंधनों में बांध लेते हे। की अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम्हारा वैसा हो जाएगा । तुम्हे नरक में जाना पड़ेगा।
आश्रम का विकाश कराना है इसके लिऐ दान करो और अपने मिलने वालों से भी करवाओ। संस्था का प्रचार करो।
भाव यही होता हे बस समझाने का नियम और तरीके आध्यातम होते हे।

और आज तो ऐसे भी गुरु हे जो अपने एक एक सत्संग के लाखो रुपए ले लेते हे और भक्त जन खुशी खुशी दे भी देते हे
धर्म और दान के नाम पर सत्संग के नाम पर कीर्तन के नाम पर 
जबरदस्त बिजनेस चलता हे । 
और भक्त लोग झूमते हे। 
भक्ति के नाम पर सब कुछ भुला कर। 

और फिर दिन भर सोते हे
थकान के नाम पर।  और उस थकान को भी अनेकों नाम दे देते हे जैसे ये थकान नहीं ये तो  प्रशाद हे , ये तो भक्ति हे, 
ये तो प्रभु पीड़ा।  पता नही जाने क्या क्या।

मिला कुछ भी नहीं मिली तो वह हे थकान
जिसे हम जन्म जन्म से प्राप्त कर ही रहे थे । 

परमात्मा ऐसे नही मिलता हे। 
वो तो प्रयास रहितता से मिलता हे। प्रयास से नहीं। प्रयास में थकान हे 
भटकन हे

वो अमर शांत महा सागर हे उसमे लहरे नहीं उठती हे। 
ने तो विचारो की ने ही भावो की और ने ही दया की और ने ही करुणा की। लहरे नहीं उठती हैं। वो तो पूर्णता से परमथिर हे 


जिसमे लहरे उठती हे और शान्त होती रहती हे  फिर उठती हे फिर शांत हो जाती हे ।
वो अमरता से पूर्ण शान्त नहीं हे।  
वो थिर नहीं हे इस्थिर नहीं हे वो अथिर हे। 
 
कर्ता ही बंधन में बंधा हे।
कर्ता ही कर्म के नियमों में बंधा हे।

सच्ची दया, सच्ची करुणा, सच्ची भावना वो हे जो पूर्णता से समस्त बंधन, समस्त दुख, समस्त तृष्णा, समस्त कर्म को हमेशा हमेशा के लिए मिटा कर पूर्ण शान्त कर दे ।
वही सच्ची दया करुणा भावना होती हे। 

जो एक बार मिल जाए तो मिटती नहीं क्युकी अमर परमात्मा से जो भी मिलता हे वो अमरता से मिलता हे। 
पूर्णता से मिलता हे। अपूर्णता से नहीं।

जिससे कुछ समय काल तक तो दया करूणा भावना मिल जाए और फिर कुछ समय काल के बाद वापस चली जाए तो वो सत्य दया ,करूणा,भावना नहीं हे वह तो लॉली पॉप हे। जो हमने जितनी कमाई और उतनी ही हमे मिली। यह तो हमारे कर्म का फल ही मिला हे। 

और कर्म का फल तो कोई रोक ही नहीं सका तो फिर कैसी दया और कैसी करुणा और कैसी भावना ।

और सत्य पूर्ण परमात्मा को तो निहकर्म होकर प्राप्त किया जाता हे।

समझाने के लिए कहना पड़ता हे उसे कोई प्राप्त नहीं कर सकता हे वो अप्राप्य हे। बस आप वही हो जाते हो जो वो स्वयं हे। क्युकी बूंद मिटी तो सागर हो गई अर्थात बचता वही हे हम मिट जाते हे। इसलिए इस मन को मारना ही सत्य को जानना हे और ये मन मिटता हे आत्मा के गुणों से जुड़ कर। जब आत्म के गुणों से आप जुड़ोगे तब मन गिरता हे उसका जहर गिरता हे।
और आत्म का अमर रस ही इस जहर को पूर्ण शांत करता हे।
और अमर रस सर्वव्याप्त हे। निशुल्क हे। 

लेकिन हमे ऐसा आज तक कोई सत्संग या कीर्तन या गुरु ही नहीं मिला जो हमारी उछल कूद को शान्त कर दे । या फिर हमारी जन्मों जन्मों की थकान को पूर्ण शान्त और संतुष्ट कर सके।

या फिर हमारी जन्मों जन्मों की तृष्णा को मिटा दे। या फिर
हमेशा के लिए हमारे दुख दर्द को मिटा दे। 

चलो ये सब भी स्वीकार कर ले लेकिन क्या जिसे हम अपना इतना कीमती समय दे रहे हे ।

वो और उसका ज्ञान क्या पूर्ण सत्य हे।
इसकी प्रामाणिकता तो हमको ठगने के बाद ही पता चलती हैं।
जब हमारे चार पांच या फिर आठ दस वर्ष हमको नस्ट होते प्रतित होते हे।
जब हमे मुक्ति के नाम पर बंधनों की माला ही मिलती हे। 
और सत्य ज्ञान के नाम पर हमे झूठा ज्ञान ही मिलता हे।

मित्रो गुरु और चेले में कोई अंतर नहीं होता हे।

ये तो बस ज्ञान और विज्ञान का बंधन ही हे की एक भुला हुआ हे और एक ज्ञाता हे । एक पांव दबा रहा हे। और एक सेवा करवा रहा हे । 

बाकी हम सब ज्ञाता ही हे हम सब गुरु ही हे। चेला तो कोई होता ही नहीं हे । हम सब उस परमसुन्य की संतान है उस स्वंभू की संतान हे। उस अहंकारी की संतान हे। उस मोही के अंश हे
उस अपूर्ण सत्य के अंश हे जो मिटता हे और बनता हे और
जो जीता हे और मरता हे

जो बदलता हे अनेक रूपो में । आस्था टूटती हे जब पूर्ण सत्य की परख होती हे। आज हमने कितने भगवान और कितने गुरु खड़े कर लिए ये हम भी नहीं जानते । हम इतने निर्बल हो गए की अब थोड़ा सा भी चमत्कार देख लेते हे तो उसी को भगवान या गुरु की उपाधि दे देते हे। और यह चमत्कार ही हम को दर दर भटकाते हे। कुछ लोग तो बिना चमत्कार को देखे ही भीड़ का हिस्सा बन जाते हे। सुनी सुनाई बातो में आकर बिना सत्य को जाने भीड़ का हिस्सा बन जाते हे। और जितनी ज्यादा भीड़ उतना ही बड़ा भगवान ।

अरे कुछ चमत्कारों को तो एक जादूगर भी कर लेता है।
क्या वो भगवान हे। 
आज विज्ञान ने भी अनको चमत्कार कर दिए हे क्या वो भगवान हे। कुछ सिधिया प्राप्त कर छोटे मोटे चमत्कार कर लेना ही भगवान हे ।

रोड पर अनेकों बाजीगर मिल जाते हे जो कुछ हाथ की सफाई करना जानते हे जो हमारे को चमत्कृत लगते हे।

क्या रटी रटाई पारंपरिक ज्ञान की बातो को बताना।
सत्य गुरु की यही महिमा हे। या फिर उस ज्ञान को ढोना ही हे। ज्ञान अनंत हे । जो जिस ज्ञान तक पहुंचा उसे वही ज्ञान सत्य लगा। ये उनके लिए सत्य भी हे क्युकी वो उससे ज्यादा जान ही नहीं पाए। क्युकी ज्ञान अनंत हे। असीमित हे।
इसीलिए कोई गुरु नहीं कोई चेला नहीं  ।
सब मिटते हे ।

गुरु भी चेला भी। बाकी सब ब्रह्म हे। 
केवल दिखावा हे । केवल स्वप्न हे।
केवल माया हे। केवल सिद्धियां हे 
केवल ज्ञान का आवरण हे।
और ऐसे ही अनंतो आवरण हे।

जो हमारे उपर चढ़े हुऐ हे। ये आवरण कर्म से नहीं हटेंगे
ये तो निहकर्मता से मिटेंगे।

जो सदा सदा के लिए बचा ले वो ही सच्चा गुरु होता हे।
और हमारा सत्य गुरु वो पूर्ण आत्मा ही हे। और उसके ज्ञान को लेने के लिए किसी भी शुल्कता की जरूरत ही नहीं क्युकी वह
तो पूर्ण निशुल्क हे। 

इसलिए मित्रो उस पूर्ण सत्य अजर अमर अविनाशी आत्मा ।
से जुड़ो आपका कल्याण निश्चित ही होगा।


अन्यथा भटकना तो हे ही।  फिर चाहे मनुष्य योनि में भटके या फिर पशु पक्षी की योनियों में  और फिर अनंतो योनियां में ।
निर्णय आपका ही रहेगा। चुनाव भी आपका ही रहेगा। 


मेरा तो निशुल्क विचार हे जिसे अच्छा लगे वो ले जाए।
लेकिन ये विचार भी ऐसे ही संजोय नहीं जाते हे।

इसके लिए भी समर्पण जरूरी हे। उसकी कृपा हुईं और मुझे भी निशुल्क पूर्ण सत्य की परख हुई ।



धन्यवाद 









शुक्रवार, 24 मार्च 2023

आत्मिक प्रेम और तात्विक प्रेम में अंतर क्या हे।

The great knowledge of soul

मित्रो,
आज हम जानेंगे आत्मिक प्रेम और तात्विक प्रेम में क्या अंतर है, सबसे पहले तात्विकता को जानते है।
तात्विकता दो धाराओ में काम करती हे पॉजिटिव और नेगेटिव
और ये दो धाराये जब मिलती हे तो सुन्य में परिवर्तित हो जाती हे। अब ये सुन्य भी अनंत हे।
जैसे हम या तो किसी को प्रेम करेंगे या फिर नफरत या फिर ने तो नफरत और ने ही प्रेम । जब पॉजिटिव होते हे तो प्रेम और जब नेगेटिव होते हे तो नफरत । सुन्य का मतलब साइलेंट होना। 
नेगेटिव भी दो धाराओं में बहता हे और पॉजिटिव भी।
और सबमें सूक्ष्मता और स्थूलता पाई जाती हे।

तात्विक प्रेम को जानने से पहले तत्व को जानना जरूरी हे।
परमसुन्य से परमचेतना का जन्म हुआ और परमचेतना से
दो धाराये निकली एक निराकार और एक साकार । 
जब ये धाराये आपस में मिलती हे अपने सफर के बाद 
तब ये सुन्य में परिवर्तित हो जाती हे। ये परम चेतनय का सुन्य
कहलाता हे। फिर दो धाराये निकलती हे एक साकार और एक निराकार जब ये दोनो धाराये मिलती हे फिर परम महा चेतैन्य सुन्य का जन्म होता हे। इस प्रकार ये चक्र चलता ही रहता हे।
सुन्य को शब्द भी कहते हे जैसे हम जिस शब्द में रह रहे हे वह उस शब्द का सुन्य हे  जैसे हम ओंकार के शब्द में रह रहे हे।
आकाश क्या हे आकाश सुन्य ही तो हे। हम जिस आकाश के नीचे रह रहे हे वो ओंकार के शब्द का सुन्य ही तो हे। शब्द क्या हे शब्द धुन ही तो हे। वाइब्रेशन ही तो हे । ऐसे ही अनेकों सुन्य
के आकाश हे जैसे ॐ ,सोहम ,कारण, महाकारण, नूरी, अनेकों सूक्ष्म लॉक हे अनंत सुन्य हे। इसे समझने के लिए हमे अनंतो जन्म भी कम पड़ जायेंगे । समाजदारी इसी में हे कि हमे अपना समय उस पूर्ण सत्य आत्मा को जानने में लगाना चाहिए।
उस अजर अमर की कृपा को प्राप्त करने में लगाना चाहिए ।
जिससे हमारी मुक्ति हो और हम इन बंधनों से छूट जाए। सदा सदा के लिए। 

वो ही हे परम सर्व हितकारी।उससे जुड़ो आपका कल्याण होगा।

परमसुन्य से परमसुन्य की यात्रा या चक्र ये अनंतो युगो की यात्रा होती हे। ये यात्रा प्रकृति के चक्र के माध्यम से भी पूर्ण होती हे।
सुन्य से सुन्य की यात्रा भी प्रकृति के माध्यम से पूर्ण होती ही हे।
लेकिन जब हम ध्यान से या फिर किसी और व्यवस्था से इस चक्र को तोड़ते हे तो हम प्रकृति के संविधान को तोड़ते हे।
और इसको तोड़ने की सजा भी हम को भुगतनी पड़ती है।
इसका फल तो हमे मिलता ही हे।लेकिन उसका भुगतान भी हमको करना पड़ता हे। इसलिए जितने हम ध्यान से सूक्ष्मता
में हम पहुंचते हे। जिस भी लोक में ,
वहा का सुख भोग कर हमे वापस आना पड़ता हे। 

अरे हम इन लोको के सुखों को भोग कर ही तो इस धरती पर आए हे ।
अनंत सूक्ष्म लोक हे अनंत स्थूल लोक हे।

तात्विक प्रेम कभी पूर्ण नहीं होता है। ये अधूरा ही रह जाता हे आत्मिक प्रेम ही पूर्ण हे और पूर्ण सत्य ही आत्मिक प्रेम हे।
तात्विक प्रेम बदलता है। 
आत्मिक प्रेम अपरिवर्तित हे। ये कभी नहीं बदलता है ।
आत्मिक प्रेम का कभी विनाश नही होता है।
आत्मिक प्रेम अविनाशी हे।
आत्मिक प्रेम अजर अमर हे।
आत्मिक प्रेम असीमित हे।
जब की तात्विक प्रेम सीमित हे।
तात्विक प्रेम में बंधन हे।
आत्मिक प्रेम बंधन मुक्त हे।
तात्विक प्रेम में भय रेहता हे।
आत्मिक प्रेम निर्भय होता हे।
तात्विक प्रेम स्वार्थ पूर्ण होता हे।
आत्मिक प्रेम पूर्ण निस्वार्थ होता हे।
मित्रो आज इस लेख में बस इतना ही लिखना था 
वैसे आत्मिक प्रेम को लिख पाना पूर्ण असंभव ही है।क्योंकि उसका प्रेम बेअंत हे । पूर्णता से बेहद हे। जिसकी कोई हद नहीं उसे बेहद कहते हे।

में उसको पूर्ण रूप से समझा ही नही सकता हूं।
उसका प्रेम परम पूर्ण पवित्र हे। 
उसका प्रेम निरअहंकारी  है।
भाव और भावना के पार हे भावातीत  है।
सत्य और असत्य के पार पूर्ण सत्य हे।

सत्य भी दो प्रकार के होते हे एक सत्य खण्डित होता हे
और एक सत्य अखंडित । मतलब बहुत गहरा हे
जो सत्य मिटता हे वो खण्डित हे 
जो सत्य बनता और बिगड़ता है वो परीवर्तित हे। बदलता हे।

और पूर्ण सत्य ने तो बनता हे और ने ही बिगड़ता है  वो तो अपरिवर्तित हे। पूर्णता से अटल हे। इसलिए उसे पूर्ण अटल परमात्मा कहते हे।
तत्व चेतना ही हे। और अतत्व परमसुन्य हे और इसके पार जो हे वो निहतत्व हे। 
सब्द और असब्द के पार निशब्द ही परमात्मा हे
शब्द से ही संसार बना हे। 
शब्द से ही अनंत तत्व बने हे।

हमारे समझ में जो नहीं आता है। उसे हम नकार देते है।
और हम इतने सक्षम भी नहीं हे। की क्या सत्य हे और क्या असत्य इसको जान पाए। लेकिन हम इतने असक्षम भी नहीं हे
की किसी भी चीज को हम पहचान भी ना सके। 

हमारे हाथ में केवल बहना ही लिखा है। क्योंकि हम बहाव का हिस्सा हे। और समय के साथ बस बहते ही जा रहे हे।
बहते ही जा रहे हे।
जन्मों जन्मों से बहते ही आ रहे हे। और बहते ही जा रहे हे।
ये बहाव रुकता ही नहीं हे । 
रोकने से भी नहीं रुकता है।
ये रूक जाए या फिर थम जाए ।
तो हमारी जन्म जन्म की थकान मिट जाय। तो
हम शांत हो जाय । हम संतुष्ट हो जाए। 
हम पूर्ण आनंदित हो जाय।

हमारी भाग दौड़ रूक जाए तो हम परमशांत हो जाए।
लोग कहते हे। की भागोगे नही तो पाओगे केसे।
में उनसे कहता हू की अगर भागने से ही सब कुछ मिल जाए
तो रुक ने की जरुरत ही क्या हे।  
ठहरने की जरुरत ही क्या हे।
बस भागते ही रहो भागने से ही सब कुछ मिल जाएगा।
में उनसे कहता हू की भाई रूक तो कोई सकता ही नहीं।
हम सब समय के साथ भाग ही तो रहे हे। 
रूक ना तो हमारे हाथ में हे ही नहीं।
रूक जाए तो चमत्कार न हो जाय।

फिर भी लोग कहते हे की अरे भाई देखो पैसा कमाने के लिऐ भागना तो पड़ेगा।
बिलकुल भागना पड़ेगा लेकिन पैसा किस लिए कमाना हे।
अरे भाई पैसे से सब कुछ मिलता हे।
पैसा जरूरी हे ।
मेने कहा भाई पैसो से 
जो ये मेरा अनमोल जीवन बह रहा हे। समय के साथ साथ 
उसे रोक दो । बस  कुछ समय के लिए नही
हमेशा के लिए रोक दो और फिर जितना पैसा आपको चाहिए उतना पैसा में आपको कमा कमा के दे दूंगा।

भाई मेरा ये जीवन मरने के बाद भी एक पल के लिए भी नहीं रुकता बस इसे रुक वा दो। मेरी जन्म जन्म की भाग दौड़ रूक वा दो बस । ये नहीं हो सकता यार ।
तो फिर इसे फास्ट करवा दो ।
ये भी नही हो सकता । ये जैसे चलता हे वैसे ही चलेगा।
चलो मेरे परिवार को हमेशा के लिए सुरक्षित करवा दो।

ये नहीं हो सकता । अबे यार जब इन पैसों से कुछ हो ही नहीं सकता तो में क्यू इसके पीछे भागू। 
टेंपरेरी सुरक्षा के लिऐ।
टेंपरेरी सुख के लिए ।
टेंपरेरी दिखावे के लिऐ या टेंपरेरी प्रसिद्धि के लिऐ।
जो हमेशा रहे उस चीज के पीछे भागो ना भागना ही हे तो। पैसा जीवन चलाने के लिए जरूरी हे । इसे इतना ही कमाओ की तुम्हारे परिवार और तुम्हारी आवश्यकताये पूर्ण हो जाए।  जरूरते नहीं जरुरते कभी पूर्ण नही हुई हे। 
डिमांड हमेशा बनी ही रहती हैं। और बनती ही रहेगी। 
जब तक हम मर न जाए । 
साथ वैसे कुछ जाता नहीं हे। ओर जाता हे तो ।

सूक्ष्मता के साथ जाता हे। स्थूलता तो यही रह जाती हे।
सूक्ष्म बंधन ही साथ जाते हे। हमारे । 

हम बेफिक्र हों जाए। 
हम तनाव मुक्त हो जाए। 
हम पूर्ण शान्त हो जाए।
बस और क्या चाहिए हमे।

आत्मिक प्रेम अखंडित हे। तात्विक प्रेम खंडित होता है।
इसलिए मित्रो उस अखंडित प्रेम से जुड़ो जीवन पूर्ण हो जायेगा।

धन्यवाद 










 
 
 



      

गुरुवार, 23 मार्च 2023

आत्मा और चेतना और परमसुन्य में क्या अंतर है

Great knowledge of soul 


मित्रो  आत्मा और चेतना और परमसुन्य इसको समझना अत्यंत आवश्यक हे बगैर इसको समझे हम सत्य को नहीं जान सकते हे। और सत्य क्या हे ये समझना बहुत जरूरी हे।

सर्वप्रथम हमे परमसुन्य को जानना जरूरी हे।
परमसुन्य क्या हे ये विज्ञान की भाषा में सबसे अंतिम छोर हे
अर्थात किसी तत्व का अंतिम रिजल्ट हे। कैसे चलो जानते हे

देखो  परमाणुओ के सयोजन से अणुओ का निर्माण होता हे।
तो सबसे सूक्ष्म परमाणु हुआ और परमाणुओ से भी सूक्ष्म नाभिक होते हे जिनमे नियुट्रान और प्रोटान होते हे।

इससे भी सूक्ष्म क्वार्क होते हे। ये प्रक्रिया जब अंतिम छोर पर होती हे तब वह परम सुन्य अवस्था कहलाती हे। अभी विज्ञान 
परमाणुओ से क्वॉर्क तक की यात्रा ही कर पाया है। 
लेकिन हमे इसकी अनंता में नहीं जाना हे। इसमें विज्ञान को जाने दो । खोज करने दो। सब कुछ सामने आ जाएगा।
वरना हमारे करोड़ो वर्ष इसे समझने ही लग जायेंगे।
ये यात्रा अनंतो सूक्ष्मता की यात्रा हे।
अनंतो जन्म भी कम पड़ जायेंगे।

समाजदारी इसी में हे की इसकी अनंतो सूक्ष्मता और अनंतो
स्थुलता के जो पार भी हे और जो इनमे रम्या राम हे उसको
जानो तो आपकी मुक्ति होगी। और वो आत्मा ही हे जो इन सब का आधार हे। पूर्ण सत्य आधार वो ही हे।

अनंतो स्थूल योनियां जीव की हे। और अनंतो सूक्ष्म योनियां भी जीव की हे । जैसे जीव, अजीव, परमजीव, 

निराकार अवस्था और साकार अवस्था भी अनंत हे।
स्वंभू स्वयं परमसुन्य हे।
अनंतो धुन अनंतो शब्द 
अनंतो श्रृष्ठि इसी से उत्पन हुई हे। अनंतो रचना इसी ने उत्पन हुई हे। अनंतो ज्ञान भी इसी के द्वारा रचे गए हे।
अनंतो जीव भी इसी से उत्पन हुए हे। चाहे सूक्ष्म जीव हो या फिर स्थूल जीव । 

ये परमसुन्य वो हे जहा कुछ नहीं हे। 
अर्थात परमसुन्य अचेतन अवस्था में ही रेहता हे।


परमसुन्य भी शांत हे  थिर हे अर्थात परमसुन्य भी टहरता हे।लेकिन इसमें पूर्ण ठहराव नहीं हे।
ये चल हे ये पूर्ण अचल नहीं हे।
ये पूर्ण शांत नहीं हो सकता परमथिरता के साथ । 

ये चलता हे और गिरता हे फिर कुछ समय के लिए ठहरता हे और फिर चलता हे।

ये ही परमसुन्य से परमचेतन्य और परमचेतन्य से अनंतो सुन्य और अनंतो सुन्य से गिरता गिरता परमसुन्य में मिल जाता हे । ये यात्रा अनंतो युगों की यात्रा होती हे । और इस यात्रा के बाद
जब ये परमसुन्य में मिलता हे। तब इसे उतना ही आराम मिलता हे जितने समय की यात्रा इसने की थी ।

ये आराम भी उस पूर्ण सत्य की पूर्ण कृपा के आधार से ही हे।
उसकी कृपा सबके लिऐ सहज और समान हे।
चाहे रंक हो या चाहे भिखारी।
जितने सुख भोग रहे हो उतने दुख भी भोगने पड़ेंगे।
जितना सम्मान मिल रहा है। 
उतना अपमान भी सहन करना पड़ेगा ।
सब कुछ बराबर मात्रा में मिलता हे।
बस दिखने में और समझने में अंतर आ जाता हे।
समय के हिसाब से वरना टोटल तो सुन्य ही आता हे।

और परमसुन्य से ही परमचेतना का जन्म हुआ हे। 
और फिर ये संसार का निर्माण ।

हम सब भी परम चेतन्य ही हे। लेकिन गिरते गिरते आज हम सूक्ष्म से इतने स्थुलता में आ गए की हम अपनी निजता को ही भूल गए।

इसी को निजता की भूल भी कहते हे।
और ये भूल अहंकार के कारण ही हुई हे।
स्वयं को परमात्मा और सर्वश्रेष्ठता की अनंतो चाहते, 
अनंतो इच्छाये ही हमारे अधुरेपन का संकेत हे।
हमारी विमुखता ही हमारे पतन का कारण बनी।

इसलिए हमे उस अजर अमर अविनाशी।
पूर्ण अचल पूर्ण अलख पूर्ण अकर्ता की सम्मुखता की आवस्कता हे।

जब तक हम पूर्ण रूप से उसकी सम्मुख्ता को सहज होकर 
प्राप्त ने करले तब तक हम जन्म दर जन्म भटकते ही रहेंगे
उस पूर्ण सत्य की कृपा को हम केवल और केवल पूर्ण असत्य
को मिटा कर ही प्राप्त कर सकते हे। 

और पूर्ण असत्य हम स्वयं ही तो हे। इसीलिए तो कहते हे की बूंद मिटे तो सागर होए। बूंद मिटी तो बचा क्या वो परमात्मा
वो ही बचा हे और वो ही बचेगा । क्योंकि वो ही था। और वो ही  हे और वो ही रहेगा। 

जब हमारा कोई अस्तित्व हे ही नहीं तो फिर हम किस अस्तित्व की बात करते हे । 

हमारा अस्तित्व केवल दिखावा हे।
ये केवल एक स्वप्न की भांति ही हे।
हम मिटते हे और फिर बनते है।
ये प्रक्रिया निरन्तर चलती ही रहती है।

जब तक हमको ठोर न मिल जाएं तब तक भटकन रहेंगी ही।
चाहे कितने ही संतो के पैर दबा ले।या फिर चरणो को धो धो कर पी ले । प्यास नहीं भूझेगी। हमारी प्यास तो उस अमर रस को पीने से ही मिटेगी। और वो अमर रस एक रसता से संपूर्ण
संसार में सर्वेव्याप्त हे। बस उस अमर रस को पीने वाला होना चाहिए। उस परम सत्य की परम निशुल्कता को कोई करोड़ो लोगो में से बिड़लो में से कोई एक बिड़ला ही ।
प्राप्त कर पाता हे। 

अनंतो नाशवान प्रकृतिया हे।
ये भी बनती हे और बिगड़ती हे
अनंतो जीव हे सूक्ष्म जीव और स्थूल जीव
ये भी बनते हे और बिगड़ते हे।

अनंतो योनियां हे ये भी बनती हे और बिगड़ती हे।
अनंतो तत्व हे ये भी बनते हे और बिगड़ते हे।
अनंतो इच्छाये हे और ये भी उत्पन होती हे और मिटती हे।
अनंतो वासनाएं हे ये भी उत्पन होती हे और मिटती हे।
उस अनंत से सब कुछ अनंत ही उत्पन हुआ हे।

अनंतो विचार भी उस अनंत से ही उत्पन हुए हे और ये विचार भी उत्पन होते हे और मिटते हे ।
भाव भी आते हे और चले जाते हे।
दया भी कभी आती हे कभी चली जाती हे।
करुणा भी आती हे और चली जाती हे।
विस्वास भी आता हे और चला जाता हे।
क्रोध भी आता हे। और चला जाता हे।
शांति भी आती हे और चली जाती हे।
वासनाएं भी आती हे और चली जाती हे।
लोभ भी आता हे और चला जाता हे।
मोह भी होता हे कभी नहीं होता ह।
सदगुन भी आते हे और चले जाते हे।
ज्ञान भी कभी कभी आता हे और चला जाता हे।
और भक्ति भी आती हे और चली जाती हे।
जीवन भी मिलता हे और ये भी चला जाता हे।
दर्द भी मिलता हे और चला जाता हे।
सुख भी मिलता हे और चला जाता हे।
रोग भी आता हे और चला जाता हे।
कभी कभी तो मित्रो रोगी को ही ले जाता हे।

जो किसी काल या समय में ने तो जन्म ले और ने ही मरे।
वो ही तो अमर कहलाता हे । जो कही से ने तो जाए और ने ही
कही से आए वो ही तो अमर हे ।

जो आयेगा उसे जाना भी पड़ेगा  जो जन्म लेगा उसे मरना भी पड़ेगा। ये ही सत्य हे ।
इसलिए आत्मा पूर्ण परमथिर हे। पूर्ण अटल हे । और सर्वव्याप्त हे । और जो सर्वव्याप्त हे उसे ने तो कही आने की जरूरत हे और ने ही कही जाने की जरूरत हे ।
वो पूर्ण समर्थ हे। 

असमर्थ को ही आना जाना पड़ता हे।
इसलिए समर्थ से जुड़े और अपना कल्याण करे ।

उसके गुणों से जुड़ो किसी भी एक गुण से जुड़ जाओ उसके एक गुण में सारे गुण जुड़े हुए ही हे। उसका एक ही  गुण अनंतो गुणों से मैच करता हे। लेकिन उसके गुण उसके अलावा किसी और से मैच भी नहीं हो सकते हे।

वो तत्व नहीं निहतत्व हे।
वो कर्ता नहीं अकर्ता हे। उसे कुछ करने की जरूरत ही नहीं हे।
वो ऑटो मोड में हे। जो उसके गुणों से जुड़ गया वो वही हो गया
जो वो हे । और वो होना उसकी कृपा पर निर्भर हे।
और उसकी कृपा भी ऑटो मोड में ही हे।
वो अपनी कृपा किसी को देता नहीं हे उसने तो अपनी कृपा 
निशुल्क बरसा रखी हे। पूर्ण सत्य परमात्मा से हमे जो भी मिलता हे वह पूर्ण निशुल्क ही मिलता हे  जिसे लेना हे वो ले जिसे ने लेना वो ने ले उसे कोई फरक नहीं पड़ता । 
जो सुल्क ले वह सत्य नहीं हे। वह अस्तय ही हे।
और कोई आपको कुछ चमत्कार दिखाए तो वो भी 
अस्तय ही हे । नजरो का धोखा हे। या फिर कुछ सूक्ष्म सिधिया
उसने कमाई हे । जिसे वो दिखा रहा हे। 
लेकिन ये सब हमेशा के लिऐ नहीं टिकती हे।
उने भी मिटना पड़ता हे। उनका प्रभाव भी समाप्त होता हे।
वह भी नियम और शर्तों में बंधी होती हे।
उने भी पूर्ण सत्य की शास्वतत्ता का पालन करना पड़ता हे।
ये विवश हे समस्त सृष्टियो को पूर्ण सत्य के सामने झुकना ही पड़ता हे।
क्योंकि ने तो ये संसार उसने बनाया हे और ने ही वो इसे बिगाड़ता हे। 
उसका बस एक ही संविधान हे की जो बना हे वो बिगड़ेगा ।

जो असत्य हे उसे मिटना ही पड़ेगा ।
और जो पूर्ण मिट जाए वो फिर पूर्ण सत्य ही बनता हे। पूर्ण सत्य बनने का मतलब वो ही बचना आप तो मिट गए।फिर बचता वही हे।
क्योंकि वो ही बचता है।
वो ही अमर हे
वो ही अविनाशी हे
बाकी सब असत्य हे
बाकी सब मर हे।
बाकी सब विनाशी और नाशी हे।
मित्रो ये कृपा हर किसी को नहीं मिलती हे किसी बिडले को ही मिलती हे। और जब ये कृपा किसी को मिलती है तो असली चमत्कार जीवन में घटित होते हे। और जब ये चमत्कार घटते
हे तो अनंत प्रकृतियों का सहयोग मिलने लग जाता हे।
और आपकी सारी तृष्णा को शान्त कर आपको हमेशा के लिए अमरता से पूर्ण संतुष्ट कर दिया जाता हे। इसको ही सच्ची पूर्ण करुणा कहते हे। आपके रोम रोम में अमरता भर जाती हे।
और आपका सारा जहर मिट कर अमृत बन जाता हे।

तो मित्रों पूर्ण सत्य से जुड़ो ।
अपने कल्याण के लिए

अपने अधूरे पन को दूर करो उस अमर रस का पान करो और
अपनी जन्म जन्म की प्यास को शांत करो।
उस अमर शांत परम शांत महा सागर से जुड़ो जो आकासातीत हे समस्त आकासो  के पार भी और समस्त आकाश में भी पूर्ण रम रहा हे। निर्लेप्ता के साथ ।
ये निर्लेप्ता क्या हे ।
जिस पर कोइ लेप ना चढ़े उसे निर्लेप कहते हे।

धन्यवाद 


 








बुधवार, 22 मार्च 2023

सब कुछ पा लेने के बाद भी हम अधूरे से क्यू रह जाते हे

Great knowledge of soul 

 मित्रो 
 आपका स्वागत है आज हम अपने लेख में बताने जा रहे की     कैसे हम अपने जीवन में सब कुछ पाकर भी कुछ अधूरा         अधूरा सा महसूस फील करते हे क्यू हम इस दुनिया में अकेले   से पड़ जाते हे। 
  
 हमे सुखी जीवन जीने के लिए स्वस्थ तन और स्वस्थ मन  के     साथ साथ प्रयाप्त धन की भी आवश्यकता  होती है। 

  लेकिन हम समय के साथ साथ प्रयाप्त धन तो प्राप्त कर ही      लेते हे अपने किसी भी व्यवसाय को कर के।

  और बाहरी सौंदर्य अर्थात तन को भी आर्टिफिसल प्रोडक्ट        का इस्तेमाल करके सुंदर तो बना ही लेते हे।

  बाहर से अपने मन को भी ठीक ठाक रख ही लेते हे
  फिर चाहे अंदर कुछ भी चल रहा हो ।
  
 हमारे शरीर का नुकसान होना ही हे चाहे हम कितनी भी
 कोशिश करले। ये शरीर हे ही नाशवान ये नस्ट होता ही है।

चाहे अच्छा करले या चाहे बुरा अंतिम परिणाम सबकुछ
समाप्त होना ही है। 

  
 लेकिन क्या हमने कभी सोचा हे की ये ठीक ठाक वाली           प्रक्रिया जो हम अपना रहे हे वो आगे हमारे ही जीवन के लिए 
 कितनी बड़ी समस्या को जन्म दे रही हे।  

  वैसे तो हम उलझे हुए तो हे ही जन्मों जन्मों से और उलझ        जाते हे । 
  जब हम अधूरे हे  ही जन्मों जन्मों से  फिर अधूरापन हमे
  क्यू नही सताएगा। 

 ये सोचने वाली बात है।
 पैसा होते हुए भी दुखी
 पैसा न हो तो भी दुखी

 यकीन ना हो तो  किसी से पूछ लेना की आप पूर्ण रूप से       स्वस्थ हे ।
पूर्ण रूप से  खुस और संतुष्ट हे
क्या आपके जीवन में पूर्ण शान्ति हे।
क्या आप पूर्ण स्वतंत्र हे।या फिर बंधन में ही हे ।
क्या आप सहज और सरल हे या फिर तनाव में हे

आपने सब कुछ कर लिया क्या अभी कुछ करना अधूरा हे
क्या अभी कुछ चाहते बाकी हे । 
वासनाएं कभी पूरी ही नही होती हे।
उत्तर क्या आएगा वो तो आप सुन ही लोगे। जान ही लोगे

 बात ये हे की हमे बार बार जीवन मिलता ही इसी लिए हे
 की हम पूर्ण हो जाए । पूर्ण संतुष्ठ हो जाए 
 हमे पूर्ण शान्ति मिल जाए । हमारी प्यास बुझ जाए।

 लेकिन हम इस अधूरेपन को पूर्ण करने के लिए जो रास्ते   अपनाते हे वो रास्ते हम गलत चुन लेते हे।

 या फिर मार्गदर्शक ही गलत चुन लेते हे। क्या पता हम जिसे   अपना मार्गदर्शक चुन रहे हे वो खुद ही भटक रहा हो। 

 सिधिया सूक्ष्म धन ही हे और उसे प्राप्त किया जा सकता हे
 स्थूल धन तो हम कमाते ही हे और उसे कैसे प्राप्त करते हे
 इसके लिए तो हम बचपन से प्रैक्टिस करते ही रहते हे।
 अनेकों बखेड़े इस स्थूल धन को पाने के लिए। करते ही हे।

 अनेकों सिद्धिया भी हे प्राप्त करने के लिए प्राप्त करने वाला   होना चाहिए इसके लिए भी सीखना पड़ता हे और अनेकों   बखेड़े खड़े करने पड़ते हे। पहले बहुत कुछ खोना भी पड़ता हे
 फिर कुछ मिलता हे। 
इसके लिए भी ध्यान में घंटो बेठना पड़ता हे 

यहां बात अधूरेपन की हे कि  हम क्यू  इतने अधुरे हे। तो
मित्रो इसे समझने के लिए आपको पूर्ण सत्य को समझना पड़ेगा  इसको जाने बगैर हम कभी पूर्ण नहीं हो सकते चाहे कुछ भी प्राप्त करले हम अधुरे ही रहेंगे । 

पूर्ण सत्य ही हे जो
हमारे खालीपन को भरने की क्षमता रखता है।

हमारे अधूरेपन को भरने की क्षमता उस समर्थ परमात्मा के पास ही हे। वो अमर खजाना उसके पास ही हे।

वो ही हे जो ये चमत्कार कर सकता हे। बाकी सब भटकाने वाले ही हे। जहा पूर्ण सत्य हे  वही पूर्ण सुख और पूर्ण शांति
है। और पूर्ण सत्य आत्मा ही हे । जिसे हम हमेशा आत्मा ही परमात्मा कहते आए हे  ।

हमने गलत मार्गदर्शको के कारण आज तक पूर्ण सत्यता को जाना ही नही । या फिर हमने इसके लिए पर्याप्त समय ही नहीं निकाला या फिर हम निकाल ही नहीं पाए। 
हमे आत्म ज्ञान के नाम पर सूक्ष्म और स्थूल लोको का ज्ञान ही दिया गया है।

या फिर चेतनाओं को ही आत्मा समझने की भूल करवा दी हे।
या फिर परमसुन्य को ही आत्मा बता दिया गया है।

अब ये भूल हे या अहंकार हे या फिर परम्परागत रूढ़िवादिता की नकल या फिर निजता का बन्धन । या फिर माया का जाल
 
आप इस ब्लॉग को पढ़ रहे  हो  हो सकता हे की ये आप पर  आत्मा की कृपा ही हो  । अब कृपा कितनी हे वो में नहीं
जानता मेरा कर्म हे आपको सत्य से रूबरू कराना
में स्वयं भी आप ही के जैसा हु लेकिन मुझे जो कृपा उस परम  सत्य से मिली हे उसे में आपको बता रहा हु। में भी आप जैसा अहंकारी जीव ही हूं।

 ने ही में किसी का गुरु हु और ने ही में किसी को ज्ञान दे रहा हु
 जो मुझे उस परम सत्य से मिला हे में उसे केवल बता रहा हु
 जिसे जानना हे वो जाने नहीं जानना हो तो ये आपकी इच्छा   पर निर्भर करता हे।


 मेरा कर्म में करता रहूंगा । पूर्ण सत्य से रूबरू कराता रहूंगा
 पूर्ण सत्य को आप जानो या मत जानो लेकिन पूर्ण सत्य   हमेशा अमर था अमर हे अमर ही रहेगा पूर्ण सत्य ने कभी   बदला हे और ने ही कभी बदलेगा वो तो पूर्ण अपरिवर्तित हे।
 अजर हे अमरता से पूर्ण शान्त  हे।


 वो जैसा हे हमेशा वेशा ही रहेगा परमथिरता के साथ
 अटल हे वो उसे कोई भी एक इंच तक हिला भी नहीं सकता
 एक इंच तो क्या एक इंच के अनंतो भाग को भी कोई आज   तक हिला नहीं पाया हे ।


वो अखंडित हे  उसे कोई भी खंडित नही कर सकता 
वो अविनाशी हे उसका कोई भी नाश नहीं कर सकता
वो निदृष्टा हे उसे कोई भी केसे भी देख नही सकता हे 
वो समयातीत हे वो समय के भी पार हे। और समय में भी हे
वो सर्वव्याप्त हे ।

वो ही तो परम सत्य हे पूर्ण सत्य वो ही तो हे
जिसे हम जानना चाहते हे । लेकिन जान नही पाते हे।

लेकिन वो अनंतों मन के भी बसकी बात नहीं हे उसे मन कभी भी जान नहीं पा सकता हे। हमारी अंतिम चाह इसको प्राप्त करना ही हे। लेकिन हमे हमारा मन हमे किसी न किसी उलझनों में उलझा ही देता हे।

हमने अनंतो जन्म ले लिए ये हमे पता नहीं है।
और आगे भी हम अनंतो जन्म लेते ही रहेंगे ।
ये घटनाएं घटित होती ही रहेंगी जब तक हम मुक्त ने हो जाए।
जब तक हम इन बंधनों से मुक्त ने हो जाए तब तक तो।

ये बंधन भी अनंत हे ।
जैसे सूक्ष्म बंधन और स्थूल बंधन
स्थूल बंधन तो हम जैसे तैसे छोड़ भी दे लेकिन सूक्ष्म बंधनों को हम नहीं छुड़ा सकते । इने तो मिटाना ही पड़ेगा।

अब सूक्ष्म बंधन क्या हे इसे भी हमे जानना पड़ेगा
समझना पड़ेगा ।
जैसे हमारे विचार,
भावना
दया
अहंकार
लोभ
मोह
इच्छा
ज्ञान ,भोग वासनाए , कल्पनाएं ,अनुभव, मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा, अनेको सूक्ष्म बंधन हे जिनमे हम उलज ही जाते हे
और ये उलझने केवल और केवल पूर्ण सत्य ही समाप्त कर सकता हे वो परम आत्मा ही हमे इन बंधनों से छुड़ा सकता हे।
क्योंकि वह निर्बंध हे ।
और वो निर्बंध ही बंधन मुक्त हे ।

हम जो भी इन आंखों से देखते हे या सुनते हैं वो सब चेतन ही हे इस जगत में या इस संसार में जड़ कुछ हे ही नहीं।
सब  कुछ चेतन ही हे इसे आपको समझना पड़ेगा ये अति सूक्ष्म से भी सूक्ष्म हे। इसी को महा माया कहते हे।

ये ही ब्रह्म हे और ये ही माया हे  ।

सबकुछ चेतन हे और चेतना गिरती हे जरती हे नष्ट होती हे
और फिर जन्म लेती हे क्योंकि ये मुक्त नहीं हे।
ये अधूरी हे ।

और हम इसकी रची हुई रचना का एक अंश हे । इसलिए हम भी अधूरे ही हे। हमारा रियल सोलमेट जब तक हमसे नहीं 
मिल जाता तब तक हम अधूरे ही रहेगे। 

बस  मित्रो आज में इस लेख में इतना ही लिखना चाहता हु
नेक्स्ट फिर किसी लेख में आगे का वर्णन करेंगे।


धन्यवाद



आपको ये लेख केसा लगा अपनी राय जरुर लिखे। मुझे खुशी होगी। और ये आत्मिक कार्य में सहयोग होगा। और
इससे आपको सहजता मिलनी शुरू हो जाएगी।
क्युकी आप किसी को सहज बना रहे हो। 




   


मंगलवार, 21 मार्च 2023

असत्य को पूर्ण सत्य के सामने झुकना ही पड़ता हैं। है

मित्रों पूर्ण सत्य के सामने असत्य को झुकना ही पड़ता है इस लेख के माध्यम से मैं बताना चाहता हूं की सत्य को कभी पराजित नहीं किया जा सकता है। और ना ही सत्य कभी परेशान होता है।

हमारी यह मान्यताएं निरर्थक और व्यर्थ है।
क्योंकि हमने पूर्ण सत्य को कभी जाना ही नहीं उसे पहचानने की कभी कोशिश ही नहीं की।

क्योंकि हमे हमेशा असत्य में ही उलझते रहे।
असत्य के समस्त बंधनों  की काट पूर्ण सत्य के पास ही है।

पूर्ण सत्य के आधार पर ही यह समस्त सृष्टिया समस्त प्रकृति
और यह समस्त जीव जीवित है। चल रहे हे।

फिर सत्य कैसे पराजित हो सकता है कैसे परेशान हो सकता है
आप मुझे बता सकते हैं तो बता दीजिए।

पूर्ण सत्य ही आत्मा है और आत्मा अजर अमर अविनाशी अखंडित निर्मोही निर्बंध अलख हे अलख

जिसे आज तक कभी किसी ने लखा नहीं उसे अलख कहते हैं
जो निर्बंध है जिस पर कभी किसी बंधन का आवरण कभी चढ़ा ही  नहीं ।

 वो असत्य के सामने घुटने टेकेगा परेशान होगा पराजित होगा फिर तो असत्य ही परमात्मा हो गया

नहीं मित्रो हमने कभी पूर्ण सत्य को कभी जाना ही नहीं
पूर्ण सत्य तो असत्य और अज्ञानता को मिटाता है।

मित्रो पूर्ण सत्य ही मोक्ष प्राप्ति का साधन है।
इसलिए पूर्ण सत्य से जुड़ जाओ,
इसी में आपका कल्याण हे ।

असत्य के कारण ही हम  जन्म मरण के चक्र में फसे हुए है ।
असत्य मिटेगा तभी हम पूर्ण सत्य को पहचान पाएंगे।
और पूर्ण सत्य को आत्मा के गुणों से जुड़ कर ही पहचाना
जा सकता हे।

आत्मा के सिवाय पूर्ण सत्य कोई हो ही नहीं सकता है।
और उस पूर्ण सत्य को कोई भी  कभी भी पराजित नहीं कर सकता हे।
वह तो अपराजीत है।
पूर्ण सत्य को प्रमाणित होने या करने की जरूरत ही नही है। क्योंकि असत्य मिटता हे ।  पूर्ण सत्य नहीं।
पूर्ण सत्य को कोई भी छलिया छल नहीं सकता हे।
वो सबकुछ जानता हे वो ही तो जानंहार  हे

मित्रो इसका मतलब असत्य ही असत्य को पराजीत करता है
असत्य ही असत्य को परेशान करता है।
पूर्ण सत्य को पूर्ण सत्य ही जीत सकता हे।
असत्य नहीं।
मित्रो असत्य पूर्ण सत्य को छू भी नही सकता हे । परेशान और पराजीत करना तो अलग बात हे। 

इसलिए वो पूर्ण अलख हे। उसे कोई लख नहीं सकता है।
वो पूर्ण अगम हे उस तक जाया नहीं जा सकता हे।
वो पूर्ण अज्ञात हे उसे ज्ञात नहीं किया जा सकता हे।
वो सनातन हे पुरातन हे पूर्ण अनादि हे बेअंत हे। नित्य हे निरन्तर हे ।

वो तो पूर्ण निमोही हे। वो तो पूर्ण अमर हे। कुछ टाइम के लिए नहीं या फिर अनंतो वर्षो के लिऐ नहीं अनन्त वर्ष भी समय में ही है। वो तो सम्यातीत हे। वहा समय हे ही नहीं। वहा समय का चक्र भी पूर्ण रूप से थिर हो जाता हे ।
इसलिए वो पूर्ण परमथिर हे। 

जो मिटता हे वो पूर्ण नहीं हो सकता। जो खंडित हे
जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित हे। 
वो पूर्ण अविनाशी नहीं हो सकता हे।

जो चल हे वो पूर्ण अचल नहीं हो सकता हे।
अचल होने का नाटक या भ्रम ही कर सकता हे
पूर्ण अचल नही हो सकता हे।

जैसे असत्य सत्य होने का नाटक करता हे जब सत्य की मार पड़ती है तब असत्य हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है ।
अंधकार मिट जाता है। 

इसलिए मित्रो आत्मा ही पूर्ण सत्य हे।
और पूर्ण सत्य को पाकर पूर्ण सत्य ही हो 
जाना हे।

हमारे मनुष्य जीवन का भी पूर्ण लक्ष्य यही तो हे।
धन्यवाद 

मित्रो आपको ये लेख केसा लगा
 अपनी राय जरूर लिखना ।





















Sabkesath.blogspot.com

चेतना का पूर्ण मिटाव केसे होता हे।

Great knowledge of soul मित्रो, स्थूल सरीर का  जन्म होता हे और वही मरता हे। सूक्ष्म शरीर बचता हे अपने संस्कार के साथ कर्म को भोगने के लिए अब...