मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

आत्मा और शरीर में क्या अंतर है।🖍️

मनुष्य का शरीर बंधन युक्त है, आत्मा बंधन मुक्त है।

मनुष्य का शरीर नाशवान है आत्मा अजर अमर है।

मनुष्य के शरीर की आयु निश्चित होती है 

लेकिन आत्मा अजर अमर  है।

यह शरीर रोग ग्रस्त है, और आत्मा आरोग्य है।
मनुष्य शरीर का प्रत्येक अंग स्वार्थी है, लेकिन आत्मा पूर्ण निस्वार्थ है।

मनुष्य के शरीर की आने-जाने की सीमा निश्चित है, लेकिन आत्मा की कोई सीमा नहीं है वह तो सर्वव्याप्त हे अनंत के भी अनंत के पार हे वह तो बेअंत हे 

मनुष्य का शरीर वर्तमान में देख सकता है, लेकिन आत्मा वर्तमान, भूतकाल और भविष्य की तिकड़ी के पार भी देख सकता है। मनुष्य का शरीर परमात्मा के दर्शन नहीं कर सकता, लेकिन आत्मा तो स्वयं परमात्मा है। 

आत्मा को पवित्र करने की आवश्यकता नहीं है आत्मा तो हमेशा से पवित्र थी और पवित्र है और पूर्ण पवित्र ही रहेगी वह तो पूर्ण सत्य हे ।

इसके लिए हमे आत्मा के गुणों से जुड़ना होगा

हमे आत्मा  की कृपा को सहज होकर प्राप्त करना होगा

हमे अपने अहंकार को मिटाना होगा तभी हम आत्मा के

गुणों से  जुड़ सकते है ।

हम आत्मा और उसकी शक्तियों को भूल गए हैं। हमें यह मनुष्य शरीर आत्मा उसकी शक्तियों को याद रखने के लिए मिला है। जिससे कि हम उस परम पवित्र परमात्मा को पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकें।

लेकिन इस जगत में आकर हम भूल जाते हैं, की हमारा जन्म किस लिए हुआ था।

और हम इस जगत की सभी वस्तुओं को  देखते हुए उन वस्तुओं की चाहतो में वासनाओं में खो जाते हैं। 

और दुख भोंगते रहते हैं, और उसके लिए परमात्मा को दोषी ठहराते रहते हैं।

जबकि इन दुखों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं।

मनुष्य का शरीर बिना आत्मा के निस्क्रीय है। मनुष्य शरीर कर्म के बंधन से बंध जाता है, जबकि आत्मा समस्त कर्म के बंधन से  मुक्त  है।

मनुष्य का शरीर परतंत्र है और आत्मा स्वतंत्र है।
मनुष्य का शरीर अशांत है और आत्मा-शांति का सागर है।
जबकि मनुष्य के शरीर का रूप रंग और जाति होती है

आत्मा का ना तो कोई रूप, ना कोई  रंग, और नाहि कोई जाति होती है।
इंसान का शरीर सक्तिसाली हो सकता है। लेकिन,
आत्मा तो सर्व-शक्तिशाली है।

 ब्रह्मांड की सभी शक्तियों आत्मा में निवास करती है।
जीवन के अंतिम लक्ष्य आत्मा को जानना,
और जानकर आत्मा ही हो जाना होता है।

मनुष्य के शरीर का बार-बार जन्म होता है, जबकि आत्मा अजन्मी है।

इंसान का शरीर मोह जाल में फंसा हुआ है, 

जबकि आत्मा निर्मोही है।

मनुष्य के शरीर को दुख-दर्द, शीत-गर्मी रोग - दोष आदि भोगने पड़ते है।
जबकि आत्मा इन से पूर्ण मुक्त है।

मनुष्य के शरीर की परछाई होती है, जबकि आत्मा की कोई परछाई नहीं होती है।

मनुष्य का शरीर एक जन्म देखने की क्षमता रखता है, जबकि आत्मा को अनंत जन्मों की परख है।

मनुष्य के शरीर दुखों का सागर है और आत्मा सुखों का सागर है।
मनुष्य का शरीर प्रकृति का दास है जबकि स्वयं प्रकृति आत्मा की दासी है।

मनुष्य का शरीर प्रकृति से बना है, और प्रकृति में ही नष्ट हो जाता है।

जबकि आत्मा तो स्वयं परमात्मा हे, यह कभी नष्ट नहीं होती, यह तो अजर अमर है, अविनाशी है, सत्य स्वरूप है, अलौकिक है, मोक्षदायिनी है,

आत्मा अचल  हे
और अलख हे 

आत्मा अगम हे
आत्मा अज्ञात हे

आत्मा ही परमात्मा हे
आत्मा अवनाशी है
आत्मा सम्यातीत हे
आत्मा तत्व और अतत्व से पार हे 
आत्मा निहतत्व है।

आत्मा अपरिवर्तन है वह कभी किसी काल में परिवर्तित नहीं होती हे वह तो अटल परमथिर सर्वयापी हे

आत्मा तो  मोक्ष दायनी हे  और हर इंसान का परम लक्ष्य मोक्ष को पाना ही तो है।
इसलिए आत्मा के गुणों से जुड़े और अपने जन्म मरण के चक्र
से मुक्त होकर उस परम अजर अमर की सरण में आ जाए आपका कल्याण निश्चित हे।
धन्यवाद 
















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