Great knowledge of soul
मित्रो
आपका स्वागत है आज हम अपने लेख में बताने जा रहे की कैसे हम अपने जीवन में सब कुछ पाकर भी कुछ अधूरा अधूरा सा महसूस फील करते हे क्यू हम इस दुनिया में अकेले से पड़ जाते हे।
हमे सुखी जीवन जीने के लिए स्वस्थ तन और स्वस्थ मन के साथ साथ प्रयाप्त धन की भी आवश्यकता होती है।
लेकिन हम समय के साथ साथ प्रयाप्त धन तो प्राप्त कर ही लेते हे अपने किसी भी व्यवसाय को कर के।
और बाहरी सौंदर्य अर्थात तन को भी आर्टिफिसल प्रोडक्ट का इस्तेमाल करके सुंदर तो बना ही लेते हे।
बाहर से अपने मन को भी ठीक ठाक रख ही लेते हे
फिर चाहे अंदर कुछ भी चल रहा हो ।
हमारे शरीर का नुकसान होना ही हे चाहे हम कितनी भी
कोशिश करले। ये शरीर हे ही नाशवान ये नस्ट होता ही है।
चाहे अच्छा करले या चाहे बुरा अंतिम परिणाम सबकुछ
समाप्त होना ही है।
लेकिन क्या हमने कभी सोचा हे की ये ठीक ठाक वाली प्रक्रिया जो हम अपना रहे हे वो आगे हमारे ही जीवन के लिए
कितनी बड़ी समस्या को जन्म दे रही हे।
वैसे तो हम उलझे हुए तो हे ही जन्मों जन्मों से और उलझ जाते हे ।
जब हम अधूरे हे ही जन्मों जन्मों से फिर अधूरापन हमे
क्यू नही सताएगा।
ये सोचने वाली बात है।
पैसा होते हुए भी दुखी
पैसा न हो तो भी दुखी
यकीन ना हो तो किसी से पूछ लेना की आप पूर्ण रूप से स्वस्थ हे ।
पूर्ण रूप से खुस और संतुष्ट हे
क्या आपके जीवन में पूर्ण शान्ति हे।
क्या आप पूर्ण स्वतंत्र हे।या फिर बंधन में ही हे ।
क्या आप सहज और सरल हे या फिर तनाव में हे
आपने सब कुछ कर लिया क्या अभी कुछ करना अधूरा हे
क्या अभी कुछ चाहते बाकी हे ।
वासनाएं कभी पूरी ही नही होती हे।
उत्तर क्या आएगा वो तो आप सुन ही लोगे। जान ही लोगे
बात ये हे की हमे बार बार जीवन मिलता ही इसी लिए हे
की हम पूर्ण हो जाए । पूर्ण संतुष्ठ हो जाए
हमे पूर्ण शान्ति मिल जाए । हमारी प्यास बुझ जाए।
लेकिन हम इस अधूरेपन को पूर्ण करने के लिए जो रास्ते अपनाते हे वो रास्ते हम गलत चुन लेते हे।
या फिर मार्गदर्शक ही गलत चुन लेते हे। क्या पता हम जिसे अपना मार्गदर्शक चुन रहे हे वो खुद ही भटक रहा हो।
सिधिया सूक्ष्म धन ही हे और उसे प्राप्त किया जा सकता हे
स्थूल धन तो हम कमाते ही हे और उसे कैसे प्राप्त करते हे
इसके लिए तो हम बचपन से प्रैक्टिस करते ही रहते हे।
अनेकों बखेड़े इस स्थूल धन को पाने के लिए। करते ही हे।
अनेकों सिद्धिया भी हे प्राप्त करने के लिए प्राप्त करने वाला होना चाहिए इसके लिए भी सीखना पड़ता हे और अनेकों बखेड़े खड़े करने पड़ते हे। पहले बहुत कुछ खोना भी पड़ता हे
फिर कुछ मिलता हे।
इसके लिए भी ध्यान में घंटो बेठना पड़ता हे
यहां बात अधूरेपन की हे कि हम क्यू इतने अधुरे हे। तो
मित्रो इसे समझने के लिए आपको पूर्ण सत्य को समझना पड़ेगा इसको जाने बगैर हम कभी पूर्ण नहीं हो सकते चाहे कुछ भी प्राप्त करले हम अधुरे ही रहेंगे ।
पूर्ण सत्य ही हे जो
हमारे खालीपन को भरने की क्षमता रखता है।
हमारे अधूरेपन को भरने की क्षमता उस समर्थ परमात्मा के पास ही हे। वो अमर खजाना उसके पास ही हे।
वो ही हे जो ये चमत्कार कर सकता हे। बाकी सब भटकाने वाले ही हे। जहा पूर्ण सत्य हे वही पूर्ण सुख और पूर्ण शांति
है। और पूर्ण सत्य आत्मा ही हे । जिसे हम हमेशा आत्मा ही परमात्मा कहते आए हे ।
हमने गलत मार्गदर्शको के कारण आज तक पूर्ण सत्यता को जाना ही नही । या फिर हमने इसके लिए पर्याप्त समय ही नहीं निकाला या फिर हम निकाल ही नहीं पाए।
हमे आत्म ज्ञान के नाम पर सूक्ष्म और स्थूल लोको का ज्ञान ही दिया गया है।
या फिर चेतनाओं को ही आत्मा समझने की भूल करवा दी हे।
या फिर परमसुन्य को ही आत्मा बता दिया गया है।
अब ये भूल हे या अहंकार हे या फिर परम्परागत रूढ़िवादिता की नकल या फिर निजता का बन्धन । या फिर माया का जाल
आप इस ब्लॉग को पढ़ रहे हो हो सकता हे की ये आप पर आत्मा की कृपा ही हो । अब कृपा कितनी हे वो में नहीं
जानता मेरा कर्म हे आपको सत्य से रूबरू कराना
में स्वयं भी आप ही के जैसा हु लेकिन मुझे जो कृपा उस परम सत्य से मिली हे उसे में आपको बता रहा हु। में भी आप जैसा अहंकारी जीव ही हूं।
ने ही में किसी का गुरु हु और ने ही में किसी को ज्ञान दे रहा हु
जो मुझे उस परम सत्य से मिला हे में उसे केवल बता रहा हु
जिसे जानना हे वो जाने नहीं जानना हो तो ये आपकी इच्छा पर निर्भर करता हे।
मेरा कर्म में करता रहूंगा । पूर्ण सत्य से रूबरू कराता रहूंगा
पूर्ण सत्य को आप जानो या मत जानो लेकिन पूर्ण सत्य हमेशा अमर था अमर हे अमर ही रहेगा पूर्ण सत्य ने कभी बदला हे और ने ही कभी बदलेगा वो तो पूर्ण अपरिवर्तित हे।
अजर हे अमरता से पूर्ण शान्त हे।
वो जैसा हे हमेशा वेशा ही रहेगा परमथिरता के साथ
अटल हे वो उसे कोई भी एक इंच तक हिला भी नहीं सकता
एक इंच तो क्या एक इंच के अनंतो भाग को भी कोई आज तक हिला नहीं पाया हे ।
वो अखंडित हे उसे कोई भी खंडित नही कर सकता
वो अविनाशी हे उसका कोई भी नाश नहीं कर सकता
वो निदृष्टा हे उसे कोई भी केसे भी देख नही सकता हे
वो समयातीत हे वो समय के भी पार हे। और समय में भी हे
वो सर्वव्याप्त हे ।
वो ही तो परम सत्य हे पूर्ण सत्य वो ही तो हे
जिसे हम जानना चाहते हे । लेकिन जान नही पाते हे।
लेकिन वो अनंतों मन के भी बसकी बात नहीं हे उसे मन कभी भी जान नहीं पा सकता हे। हमारी अंतिम चाह इसको प्राप्त करना ही हे। लेकिन हमे हमारा मन हमे किसी न किसी उलझनों में उलझा ही देता हे।
हमने अनंतो जन्म ले लिए ये हमे पता नहीं है।
और आगे भी हम अनंतो जन्म लेते ही रहेंगे ।
ये घटनाएं घटित होती ही रहेंगी जब तक हम मुक्त ने हो जाए।
जब तक हम इन बंधनों से मुक्त ने हो जाए तब तक तो।
ये बंधन भी अनंत हे ।
जैसे सूक्ष्म बंधन और स्थूल बंधन
स्थूल बंधन तो हम जैसे तैसे छोड़ भी दे लेकिन सूक्ष्म बंधनों को हम नहीं छुड़ा सकते । इने तो मिटाना ही पड़ेगा।
अब सूक्ष्म बंधन क्या हे इसे भी हमे जानना पड़ेगा
समझना पड़ेगा ।
जैसे हमारे विचार,
भावना
दया
अहंकार
लोभ
मोह
इच्छा
ज्ञान ,भोग वासनाए , कल्पनाएं ,अनुभव, मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा, अनेको सूक्ष्म बंधन हे जिनमे हम उलज ही जाते हे
और ये उलझने केवल और केवल पूर्ण सत्य ही समाप्त कर सकता हे वो परम आत्मा ही हमे इन बंधनों से छुड़ा सकता हे।
क्योंकि वह निर्बंध हे ।
और वो निर्बंध ही बंधन मुक्त हे ।
हम जो भी इन आंखों से देखते हे या सुनते हैं वो सब चेतन ही हे इस जगत में या इस संसार में जड़ कुछ हे ही नहीं।
सब कुछ चेतन ही हे इसे आपको समझना पड़ेगा ये अति सूक्ष्म से भी सूक्ष्म हे। इसी को महा माया कहते हे।
ये ही ब्रह्म हे और ये ही माया हे ।
सबकुछ चेतन हे और चेतना गिरती हे जरती हे नष्ट होती हे
और फिर जन्म लेती हे क्योंकि ये मुक्त नहीं हे।
ये अधूरी हे ।
और हम इसकी रची हुई रचना का एक अंश हे । इसलिए हम भी अधूरे ही हे। हमारा रियल सोलमेट जब तक हमसे नहीं
मिल जाता तब तक हम अधूरे ही रहेगे।
बस मित्रो आज में इस लेख में इतना ही लिखना चाहता हु
नेक्स्ट फिर किसी लेख में आगे का वर्णन करेंगे।
धन्यवाद
आपको ये लेख केसा लगा अपनी राय जरुर लिखे। मुझे खुशी होगी। और ये आत्मिक कार्य में सहयोग होगा। और
इससे आपको सहजता मिलनी शुरू हो जाएगी।
क्युकी आप किसी को सहज बना रहे हो।
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