गुरुवार, 23 मार्च 2023

आत्मा और चेतना और परमसुन्य में क्या अंतर है

Great knowledge of soul 


मित्रो  आत्मा और चेतना और परमसुन्य इसको समझना अत्यंत आवश्यक हे बगैर इसको समझे हम सत्य को नहीं जान सकते हे। और सत्य क्या हे ये समझना बहुत जरूरी हे।

सर्वप्रथम हमे परमसुन्य को जानना जरूरी हे।
परमसुन्य क्या हे ये विज्ञान की भाषा में सबसे अंतिम छोर हे
अर्थात किसी तत्व का अंतिम रिजल्ट हे। कैसे चलो जानते हे

देखो  परमाणुओ के सयोजन से अणुओ का निर्माण होता हे।
तो सबसे सूक्ष्म परमाणु हुआ और परमाणुओ से भी सूक्ष्म नाभिक होते हे जिनमे नियुट्रान और प्रोटान होते हे।

इससे भी सूक्ष्म क्वार्क होते हे। ये प्रक्रिया जब अंतिम छोर पर होती हे तब वह परम सुन्य अवस्था कहलाती हे। अभी विज्ञान 
परमाणुओ से क्वॉर्क तक की यात्रा ही कर पाया है। 
लेकिन हमे इसकी अनंता में नहीं जाना हे। इसमें विज्ञान को जाने दो । खोज करने दो। सब कुछ सामने आ जाएगा।
वरना हमारे करोड़ो वर्ष इसे समझने ही लग जायेंगे।
ये यात्रा अनंतो सूक्ष्मता की यात्रा हे।
अनंतो जन्म भी कम पड़ जायेंगे।

समाजदारी इसी में हे की इसकी अनंतो सूक्ष्मता और अनंतो
स्थुलता के जो पार भी हे और जो इनमे रम्या राम हे उसको
जानो तो आपकी मुक्ति होगी। और वो आत्मा ही हे जो इन सब का आधार हे। पूर्ण सत्य आधार वो ही हे।

अनंतो स्थूल योनियां जीव की हे। और अनंतो सूक्ष्म योनियां भी जीव की हे । जैसे जीव, अजीव, परमजीव, 

निराकार अवस्था और साकार अवस्था भी अनंत हे।
स्वंभू स्वयं परमसुन्य हे।
अनंतो धुन अनंतो शब्द 
अनंतो श्रृष्ठि इसी से उत्पन हुई हे। अनंतो रचना इसी ने उत्पन हुई हे। अनंतो ज्ञान भी इसी के द्वारा रचे गए हे।
अनंतो जीव भी इसी से उत्पन हुए हे। चाहे सूक्ष्म जीव हो या फिर स्थूल जीव । 

ये परमसुन्य वो हे जहा कुछ नहीं हे। 
अर्थात परमसुन्य अचेतन अवस्था में ही रेहता हे।


परमसुन्य भी शांत हे  थिर हे अर्थात परमसुन्य भी टहरता हे।लेकिन इसमें पूर्ण ठहराव नहीं हे।
ये चल हे ये पूर्ण अचल नहीं हे।
ये पूर्ण शांत नहीं हो सकता परमथिरता के साथ । 

ये चलता हे और गिरता हे फिर कुछ समय के लिए ठहरता हे और फिर चलता हे।

ये ही परमसुन्य से परमचेतन्य और परमचेतन्य से अनंतो सुन्य और अनंतो सुन्य से गिरता गिरता परमसुन्य में मिल जाता हे । ये यात्रा अनंतो युगों की यात्रा होती हे । और इस यात्रा के बाद
जब ये परमसुन्य में मिलता हे। तब इसे उतना ही आराम मिलता हे जितने समय की यात्रा इसने की थी ।

ये आराम भी उस पूर्ण सत्य की पूर्ण कृपा के आधार से ही हे।
उसकी कृपा सबके लिऐ सहज और समान हे।
चाहे रंक हो या चाहे भिखारी।
जितने सुख भोग रहे हो उतने दुख भी भोगने पड़ेंगे।
जितना सम्मान मिल रहा है। 
उतना अपमान भी सहन करना पड़ेगा ।
सब कुछ बराबर मात्रा में मिलता हे।
बस दिखने में और समझने में अंतर आ जाता हे।
समय के हिसाब से वरना टोटल तो सुन्य ही आता हे।

और परमसुन्य से ही परमचेतना का जन्म हुआ हे। 
और फिर ये संसार का निर्माण ।

हम सब भी परम चेतन्य ही हे। लेकिन गिरते गिरते आज हम सूक्ष्म से इतने स्थुलता में आ गए की हम अपनी निजता को ही भूल गए।

इसी को निजता की भूल भी कहते हे।
और ये भूल अहंकार के कारण ही हुई हे।
स्वयं को परमात्मा और सर्वश्रेष्ठता की अनंतो चाहते, 
अनंतो इच्छाये ही हमारे अधुरेपन का संकेत हे।
हमारी विमुखता ही हमारे पतन का कारण बनी।

इसलिए हमे उस अजर अमर अविनाशी।
पूर्ण अचल पूर्ण अलख पूर्ण अकर्ता की सम्मुखता की आवस्कता हे।

जब तक हम पूर्ण रूप से उसकी सम्मुख्ता को सहज होकर 
प्राप्त ने करले तब तक हम जन्म दर जन्म भटकते ही रहेंगे
उस पूर्ण सत्य की कृपा को हम केवल और केवल पूर्ण असत्य
को मिटा कर ही प्राप्त कर सकते हे। 

और पूर्ण असत्य हम स्वयं ही तो हे। इसीलिए तो कहते हे की बूंद मिटे तो सागर होए। बूंद मिटी तो बचा क्या वो परमात्मा
वो ही बचा हे और वो ही बचेगा । क्योंकि वो ही था। और वो ही  हे और वो ही रहेगा। 

जब हमारा कोई अस्तित्व हे ही नहीं तो फिर हम किस अस्तित्व की बात करते हे । 

हमारा अस्तित्व केवल दिखावा हे।
ये केवल एक स्वप्न की भांति ही हे।
हम मिटते हे और फिर बनते है।
ये प्रक्रिया निरन्तर चलती ही रहती है।

जब तक हमको ठोर न मिल जाएं तब तक भटकन रहेंगी ही।
चाहे कितने ही संतो के पैर दबा ले।या फिर चरणो को धो धो कर पी ले । प्यास नहीं भूझेगी। हमारी प्यास तो उस अमर रस को पीने से ही मिटेगी। और वो अमर रस एक रसता से संपूर्ण
संसार में सर्वेव्याप्त हे। बस उस अमर रस को पीने वाला होना चाहिए। उस परम सत्य की परम निशुल्कता को कोई करोड़ो लोगो में से बिड़लो में से कोई एक बिड़ला ही ।
प्राप्त कर पाता हे। 

अनंतो नाशवान प्रकृतिया हे।
ये भी बनती हे और बिगड़ती हे
अनंतो जीव हे सूक्ष्म जीव और स्थूल जीव
ये भी बनते हे और बिगड़ते हे।

अनंतो योनियां हे ये भी बनती हे और बिगड़ती हे।
अनंतो तत्व हे ये भी बनते हे और बिगड़ते हे।
अनंतो इच्छाये हे और ये भी उत्पन होती हे और मिटती हे।
अनंतो वासनाएं हे ये भी उत्पन होती हे और मिटती हे।
उस अनंत से सब कुछ अनंत ही उत्पन हुआ हे।

अनंतो विचार भी उस अनंत से ही उत्पन हुए हे और ये विचार भी उत्पन होते हे और मिटते हे ।
भाव भी आते हे और चले जाते हे।
दया भी कभी आती हे कभी चली जाती हे।
करुणा भी आती हे और चली जाती हे।
विस्वास भी आता हे और चला जाता हे।
क्रोध भी आता हे। और चला जाता हे।
शांति भी आती हे और चली जाती हे।
वासनाएं भी आती हे और चली जाती हे।
लोभ भी आता हे और चला जाता हे।
मोह भी होता हे कभी नहीं होता ह।
सदगुन भी आते हे और चले जाते हे।
ज्ञान भी कभी कभी आता हे और चला जाता हे।
और भक्ति भी आती हे और चली जाती हे।
जीवन भी मिलता हे और ये भी चला जाता हे।
दर्द भी मिलता हे और चला जाता हे।
सुख भी मिलता हे और चला जाता हे।
रोग भी आता हे और चला जाता हे।
कभी कभी तो मित्रो रोगी को ही ले जाता हे।

जो किसी काल या समय में ने तो जन्म ले और ने ही मरे।
वो ही तो अमर कहलाता हे । जो कही से ने तो जाए और ने ही
कही से आए वो ही तो अमर हे ।

जो आयेगा उसे जाना भी पड़ेगा  जो जन्म लेगा उसे मरना भी पड़ेगा। ये ही सत्य हे ।
इसलिए आत्मा पूर्ण परमथिर हे। पूर्ण अटल हे । और सर्वव्याप्त हे । और जो सर्वव्याप्त हे उसे ने तो कही आने की जरूरत हे और ने ही कही जाने की जरूरत हे ।
वो पूर्ण समर्थ हे। 

असमर्थ को ही आना जाना पड़ता हे।
इसलिए समर्थ से जुड़े और अपना कल्याण करे ।

उसके गुणों से जुड़ो किसी भी एक गुण से जुड़ जाओ उसके एक गुण में सारे गुण जुड़े हुए ही हे। उसका एक ही  गुण अनंतो गुणों से मैच करता हे। लेकिन उसके गुण उसके अलावा किसी और से मैच भी नहीं हो सकते हे।

वो तत्व नहीं निहतत्व हे।
वो कर्ता नहीं अकर्ता हे। उसे कुछ करने की जरूरत ही नहीं हे।
वो ऑटो मोड में हे। जो उसके गुणों से जुड़ गया वो वही हो गया
जो वो हे । और वो होना उसकी कृपा पर निर्भर हे।
और उसकी कृपा भी ऑटो मोड में ही हे।
वो अपनी कृपा किसी को देता नहीं हे उसने तो अपनी कृपा 
निशुल्क बरसा रखी हे। पूर्ण सत्य परमात्मा से हमे जो भी मिलता हे वह पूर्ण निशुल्क ही मिलता हे  जिसे लेना हे वो ले जिसे ने लेना वो ने ले उसे कोई फरक नहीं पड़ता । 
जो सुल्क ले वह सत्य नहीं हे। वह अस्तय ही हे।
और कोई आपको कुछ चमत्कार दिखाए तो वो भी 
अस्तय ही हे । नजरो का धोखा हे। या फिर कुछ सूक्ष्म सिधिया
उसने कमाई हे । जिसे वो दिखा रहा हे। 
लेकिन ये सब हमेशा के लिऐ नहीं टिकती हे।
उने भी मिटना पड़ता हे। उनका प्रभाव भी समाप्त होता हे।
वह भी नियम और शर्तों में बंधी होती हे।
उने भी पूर्ण सत्य की शास्वतत्ता का पालन करना पड़ता हे।
ये विवश हे समस्त सृष्टियो को पूर्ण सत्य के सामने झुकना ही पड़ता हे।
क्योंकि ने तो ये संसार उसने बनाया हे और ने ही वो इसे बिगाड़ता हे। 
उसका बस एक ही संविधान हे की जो बना हे वो बिगड़ेगा ।

जो असत्य हे उसे मिटना ही पड़ेगा ।
और जो पूर्ण मिट जाए वो फिर पूर्ण सत्य ही बनता हे। पूर्ण सत्य बनने का मतलब वो ही बचना आप तो मिट गए।फिर बचता वही हे।
क्योंकि वो ही बचता है।
वो ही अमर हे
वो ही अविनाशी हे
बाकी सब असत्य हे
बाकी सब मर हे।
बाकी सब विनाशी और नाशी हे।
मित्रो ये कृपा हर किसी को नहीं मिलती हे किसी बिडले को ही मिलती हे। और जब ये कृपा किसी को मिलती है तो असली चमत्कार जीवन में घटित होते हे। और जब ये चमत्कार घटते
हे तो अनंत प्रकृतियों का सहयोग मिलने लग जाता हे।
और आपकी सारी तृष्णा को शान्त कर आपको हमेशा के लिए अमरता से पूर्ण संतुष्ट कर दिया जाता हे। इसको ही सच्ची पूर्ण करुणा कहते हे। आपके रोम रोम में अमरता भर जाती हे।
और आपका सारा जहर मिट कर अमृत बन जाता हे।

तो मित्रों पूर्ण सत्य से जुड़ो ।
अपने कल्याण के लिए

अपने अधूरे पन को दूर करो उस अमर रस का पान करो और
अपनी जन्म जन्म की प्यास को शांत करो।
उस अमर शांत परम शांत महा सागर से जुड़ो जो आकासातीत हे समस्त आकासो  के पार भी और समस्त आकाश में भी पूर्ण रम रहा हे। निर्लेप्ता के साथ ।
ये निर्लेप्ता क्या हे ।
जिस पर कोइ लेप ना चढ़े उसे निर्लेप कहते हे।

धन्यवाद 


 








कोई टिप्पणी नहीं:

Sabkesath.blogspot.com

चेतना का पूर्ण मिटाव केसे होता हे।

Great knowledge of soul मित्रो, स्थूल सरीर का  जन्म होता हे और वही मरता हे। सूक्ष्म शरीर बचता हे अपने संस्कार के साथ कर्म को भोगने के लिए अब...