असत्य को पूर्ण सत्य के सामने झुकना ही पड़ता हैं। है

मित्रों पूर्ण सत्य के सामने असत्य को झुकना ही पड़ता है इस लेख के माध्यम से मैं बताना चाहता हूं की सत्य को कभी पराजित नहीं किया जा सकता है। और ना ही सत्य कभी परेशान होता है।

हमारी यह मान्यताएं निरर्थक और व्यर्थ है।
क्योंकि हमने पूर्ण सत्य को कभी जाना ही नहीं उसे पहचानने की कभी कोशिश ही नहीं की।

क्योंकि हमे हमेशा असत्य में ही उलझते रहे।
असत्य के समस्त बंधनों  की काट पूर्ण सत्य के पास ही है।

पूर्ण सत्य के आधार पर ही यह समस्त सृष्टिया समस्त प्रकृति
और यह समस्त जीव जीवित है। चल रहे हे।

फिर सत्य कैसे पराजित हो सकता है कैसे परेशान हो सकता है
आप मुझे बता सकते हैं तो बता दीजिए।

पूर्ण सत्य ही आत्मा है और आत्मा अजर अमर अविनाशी अखंडित निर्मोही निर्बंध अलख हे अलख

जिसे आज तक कभी किसी ने लखा नहीं उसे अलख कहते हैं
जो निर्बंध है जिस पर कभी किसी बंधन का आवरण कभी चढ़ा ही  नहीं ।

 वो असत्य के सामने घुटने टेकेगा परेशान होगा पराजित होगा फिर तो असत्य ही परमात्मा हो गया

नहीं मित्रो हमने कभी पूर्ण सत्य को कभी जाना ही नहीं
पूर्ण सत्य तो असत्य और अज्ञानता को मिटाता है।

मित्रो पूर्ण सत्य ही मोक्ष प्राप्ति का साधन है।
इसलिए पूर्ण सत्य से जुड़ जाओ,
इसी में आपका कल्याण हे ।

असत्य के कारण ही हम  जन्म मरण के चक्र में फसे हुए है ।
असत्य मिटेगा तभी हम पूर्ण सत्य को पहचान पाएंगे।
और पूर्ण सत्य को आत्मा के गुणों से जुड़ कर ही पहचाना
जा सकता हे।

आत्मा के सिवाय पूर्ण सत्य कोई हो ही नहीं सकता है।
और उस पूर्ण सत्य को कोई भी  कभी भी पराजित नहीं कर सकता हे।
वह तो अपराजीत है।
पूर्ण सत्य को प्रमाणित होने या करने की जरूरत ही नही है। क्योंकि असत्य मिटता हे ।  पूर्ण सत्य नहीं।
पूर्ण सत्य को कोई भी छलिया छल नहीं सकता हे।
वो सबकुछ जानता हे वो ही तो जानंहार  हे

मित्रो इसका मतलब असत्य ही असत्य को पराजीत करता है
असत्य ही असत्य को परेशान करता है।
पूर्ण सत्य को पूर्ण सत्य ही जीत सकता हे।
असत्य नहीं।
मित्रो असत्य पूर्ण सत्य को छू भी नही सकता हे । परेशान और पराजीत करना तो अलग बात हे। 

इसलिए वो पूर्ण अलख हे। उसे कोई लख नहीं सकता है।
वो पूर्ण अगम हे उस तक जाया नहीं जा सकता हे।
वो पूर्ण अज्ञात हे उसे ज्ञात नहीं किया जा सकता हे।
वो सनातन हे पुरातन हे पूर्ण अनादि हे बेअंत हे। नित्य हे निरन्तर हे ।

वो तो पूर्ण निमोही हे। वो तो पूर्ण अमर हे। कुछ टाइम के लिए नहीं या फिर अनंतो वर्षो के लिऐ नहीं अनन्त वर्ष भी समय में ही है। वो तो सम्यातीत हे। वहा समय हे ही नहीं। वहा समय का चक्र भी पूर्ण रूप से थिर हो जाता हे ।
इसलिए वो पूर्ण परमथिर हे। 

जो मिटता हे वो पूर्ण नहीं हो सकता। जो खंडित हे
जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित हे। 
वो पूर्ण अविनाशी नहीं हो सकता हे।

जो चल हे वो पूर्ण अचल नहीं हो सकता हे।
अचल होने का नाटक या भ्रम ही कर सकता हे
पूर्ण अचल नही हो सकता हे।

जैसे असत्य सत्य होने का नाटक करता हे जब सत्य की मार पड़ती है तब असत्य हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है ।
अंधकार मिट जाता है। 

इसलिए मित्रो आत्मा ही पूर्ण सत्य हे।
और पूर्ण सत्य को पाकर पूर्ण सत्य ही हो 
जाना हे।

हमारे मनुष्य जीवन का भी पूर्ण लक्ष्य यही तो हे।
धन्यवाद 

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