गुरुवार, 30 मार्च 2023

आत्मिक निशुल्कता और तात्विक निशुल्कता में क्या अंतर हे।

Great knowledge of soul 


 मित्रो,
 पूरा लेख पढ़ लोगे तब भी कुछ समझ नही आयेगा क्युकी ये सहज और सरल ज्ञान हे ।और हमे आदत हे असहज होकर हर काम को करने की या फिर हमने आज तक ये ही जाना हे की परमात्मा ही क्या इस जगत की कोई भी चीज अधिक से अधिक प्रयास करने से ही मिलती हे ।

जैसे जप करो तो भगवान मिलेगा
तप करो तो.............
व्रत करो तो भगवान कुछ देगा।
समाधि लगा लो भगवान मिलेगा।
मतलब तुम से पहले भगवान को चाहिए ।
जब वो संतुष्ट हो जायेगा तब तुमको देगा।

इसीलिए ये निशुल्कता वाली बाते हमे समझ में नही आयेगी। 

आज हम आत्मिक निशुल्कता और तात्विक निशुल्कता  पर बात करेंगे।

आत्मिक निशुल्कता सर्वव्याप्त हे और तात्विक निशुल्कता केवल व्याप्त हे।
आत्मिक निशुल्कता सहज और सरल हे। इसको लेने के लिए कोई प्रयास नहीं करने पड़ते हे। वो प्रयास रहित हे।

तात्विक निशुल्कता को प्राप्त करने के लिए प्रयास की जरूरत पड़ती हे। इसको लेने के लिए आना जाना ही पड़ता  हे।

अब हम इसको सरलता से समझते हे ।

देखो, 
मित्रों आत्मित निशुल्कता सर्वव्याप्त हे इसीलिए
इसको लेने के लिए हम कहा जाए ।

कही आने जाने की जरूरत ही नही पड़ती हे। 
जहा हे वही प्राप्त हो जायेगी।
परम निशुल्कता से इसके लिए कोई शुल्क नही देना पड़ता हे।

तात्विक निशुल्कता व्याप्त हे। तो इसको लेने के लिए
आना जाना तो पड़ेगा। क्युकी ये सभी जगह नही हे ।
जैसे सूर्य की रोशनी बंद कमरों में नही हे या जैसे किसी गुफा में सूर्य की रोशनी नही हे तो उसे लेने के लिए बाहर आना जाना तो पड़ेगा तभी तो सूर्य कि धूप या रोशनी हमे मिलेगी। जल भी कही पर हे तो कही पर नही हे।
इसे लेने के लिए इधर उधर आना जाना तो पड़ेगा।
सूर्य का जो ताप हे वो भी समान नही हे। कही ज्यादा और कही कम होता हे दूरी के हिसाब से।
लेकिन आत्मा सम सर्वव्यापी हे वह अनंतो श्रृष्टियो में सभी स्थान पर समान हे। जेसी निकटतम पर हे ।
दूरतम पर भी वैसी ही हे कोई बदलाव नहीं हे।

जैसे ऑक्सीजन कही पर हे और कही पर नही हे और कही पर कम हो जाती हे। 

जैसे अग्नि कही पर हे और कही पर नही। जहा ऑक्सीजन हे वहा अग्नि जल सकती हे और जहा ऑक्सीजन नही वहा अग्नि
जल नही सकती हे। बुझ जायेगी। अर्थात इसे भी लेने के लिए प्रयास करने पड़ते हे।

इसलिए पूर्ण निशुल्क आत्मिक हे। तात्विकता नही।

अनंतो उदाहरण हे अब में आपको समस्त exampal तो नही दे सकता हु ।
इतना ने तो आपके पास समय हे।और ने ही मेरे पास ।

देखो, 
तात्विक निशुल्कता चेंज होती रहती हे।
और आत्मिक निशुल्कता चेंज नही होती हे।
वो जस की तस ही रहती हे। पूर्ण अटलता के साथ।
इसीलिए आत्मिक निशुल्कता समय की मोहताज नही हे।
समय के बंधन में नही हे ।

और तात्विक निशुल्कता को समय के बंधन में रह कर।
निशुल्कता देने के लिए बाध्य हे। इन्हे प्रकृति के नियमो में चलना ही पड़ता हे। ये मुक्त नही हे।

और जो स्वयं मुक्त नही हे वो हमे क्या मुक्त करवाएंगे।
जो स्वयं हर चीज का शुल्क लेते हे ।

कृपा का शुल्क।

दया का शुल्क ।

करुणा का शुल्क।

तप का शुल्क ।

जप का शुल्क ।

धन का शुल्क ।

धर्म का शुल्क ।

विचारो का शुल्क ।

समय का शुल्क ।

अन्न का शुल्क ।

इच्छाओं का शुल्क।

फिर ये पूर्ण निशुल्क केसे हो सकते हे। हां ये कुछ समय के लिए हमे निशुल्क मिल सकते हे। 

मित्रो पूर्ण सत्य कभी नास्तिक नही हो सकता हे।
वो तो नास्तिक और आस्तिक दोनो से पूर्ण मुक्त हे।

आत्मिकता निहतत्व में हे और तात्विकता तत्व और अतत्व  में हे।
और निहतत्व तत्व और अतत्व दोनो मे हे। 
और दोनो के पार भी हे।

और तात्विकता तत्व और अतत्व में ही रमता हे ।
तात्विकता तत्व में चेतन अवस्था में और अतत्व में अचेतन अवस्था में रहता हे।

मित्रो ये केवल ज्ञान नही हे। ये पूर्ण सत्य ज्ञान हे। ये आपकी एक एक नश खोल कर रख देगा । 
ये पूर्ण आध्यात्मिक और आत्मिक ज्ञान हे।

इसे मजाक मत समझना अन्यथा आप स्वयं मजाक बन जायेगे इस तात्विकता के जाल में उलज कर ।

धन्यवाद 













कोई टिप्पणी नहीं:

Sabkesath.blogspot.com

चेतना का पूर्ण मिटाव केसे होता हे।

Great knowledge of soul मित्रो, स्थूल सरीर का  जन्म होता हे और वही मरता हे। सूक्ष्म शरीर बचता हे अपने संस्कार के साथ कर्म को भोगने के लिए अब...