मंगलवार, 28 मार्च 2023

परिवर्तनशील सत्ता और अपरिवर्तनशील सत्ता में क्या अंतर हे।

Great knowledge of soul

मित्रो

परिवर्तनशील और अपरिवर्तनशील सत्ता में अनंतो अंतर हे।
लेकिन आज हम कुछ महत्वपूर्ण अंतरों को जानेंगे।

परिवर्तनशील सत्ता एक चक्र में कार्य करती हे।
और ये समय के साथ परिवर्तित होती रहती हे।

इस समस्त जगत की प्रत्येक वस्तु या जीव या फिर
जीव जंतु या फिर समस्त श्रृष्टि परिवर्तित चक्र का हिस्सा ही हे।
जिसे हम निर्जीव समझते हे वह भी परिवर्तित हे।

समय का अंतर हे कि कुछ चीजे कुछ अंतराल पर परिवर्तित
हो जाती हे और कुछ लम्बे समय के बाद परिवर्तित होती हे।
लेकिन परिवर्तित जरूर होती हे।

इस समस्त जगत की अनंतो सुक्ष्म वस्तुएं और अनंतो स्थूल वस्तुएं परिवर्तनशील ही हे।

जैसे जल, वायु, सूर्य,चंद्र  अग्नी, पेड़ पौधे, जीव जंतु , विचार , सुख,दुख, तारे, और अनंतो ब्रह्माण्ड 
भाव, क्रोध ,शांति,लोभ,करुणा, स्वप्न, आदि अनंतो 

शब्द बदलते हे अशब्द में ।
दिन परिवर्तित होते हे रात में।
और रात परिवर्तित होती हे दिन मे।

ऋतुएं भी परिवर्तित होती रहती हे।
मन भी बदलता हे।
विस्वास भी बदलता हे।

और प्रकाश परिवर्तित होता हे अंधकार में।
और अंधकार परिवर्तित होता हे प्रकाश में।

और अज्ञान परिवर्तित होता हे ज्ञान में।
और ज्ञान परिवर्तित होता हे अज्ञान में।

समस्त सत्ताओं को परिवर्तित होना ही पड़ता हे। सुन्य में 
और सुन्य भी परिवर्तीत होता हे परम चेतनाओं में।
और परम चेतना परिवर्तीत होती हे परमसुन्य में ।

और फिर अनंतो युगों बाद परमसुन्य से परम चेतनाए जन्म लेती हे सृष्टि रचना के लिए । 

और फिर ये अनंतो ताम झाम हमे नजर आते हे।। 
जो हमे दिखाई दे रहे हे इस संसार में। और कुछ जो अदृश्य हे 


कुछ बदलाव हम देख पाते हे ।
और कुछ बदलाव हम देख नहीं पाते हे।

क्युकी कुछ बदलाव सुक्ष्मता में होते हे ।
और कुछ बदलाव स्थूलता मे।
लेकिन परिवर्तन होते जरूर हे। 

और ये जन्म मरण क्या हे ये भी परिवर्तन ही हे।
हम मरते हे और जन्म लेते हे।

अब मरने के बाद हम किस में परिवर्तित होते हे।
ये अपने अपने कर्मो पर निर्भर करता हे।

और कर्म का फल निर्धारित हे वो मिलता ही हे।
ये फिक्स नही हे की कब किस कर्म का फल कब मिलेगा।
लेकिन मिलता जरूर हे।


अब बात करते हे अपरिवर्तन शील सत्ता की तो सबसे पहले 
में आपको बता देता हु की ये अविनाशी सत्ता हे इसमें कभी
किसी काल या समय में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता हे।
ये जस की तस रहती हे।

ये अखंडित हे।
ये अचल हे।
ये पूर्ण परमथिर हे अर्थात एक दम रुकी हुई । 
ये चलती नहीं हे। ये अचल हे।

ये पारदर्शी हे ।
ये निर्लेप्त हे।
ये अलख हे।

ये निरछूत हे इसे कोई छू नही सकता हे। ने तो अनुभव से
और ने ही कल्पनाओं से । 
ये कल्पना अतीत हे।
इसे कोई कल्पनाओं से भी नही जान सकता हे।

ये इन्द्रिया अतीत हे जो समस्त इंद्रियों के पार हे। 

इसलिए मित्रो 

उस निश्चिंत से जुड़ो।
वो आपकी समस्त चिंताओं का निवारण सहजता से समाप्त कर देगा।

ये ज्ञान आपको कही नही मिलेगा । 
ने तो पोथी पन्नो में ।
ने ही धर्म ग्रंथो मे। 
ज्ञान अनंत हे।

और इन अनंत ज्ञान में आप उलझ कर रह जाओगे।
आत्म ज्ञान सहज और सरल हे। इसलिए इससे जुडोगे तो
आपके तन मन को पूर्ण शांति मिलेगी।
और अनंत अपार अमर धन को प्राप्त करोगे।

धन्यवाद 














कोई टिप्पणी नहीं:

Sabkesath.blogspot.com

चेतना का पूर्ण मिटाव केसे होता हे।

Great knowledge of soul मित्रो, स्थूल सरीर का  जन्म होता हे और वही मरता हे। सूक्ष्म शरीर बचता हे अपने संस्कार के साथ कर्म को भोगने के लिए अब...