ज्ञान और अज्ञान में अंतर क्या हे
Great knowledge of soul
मित्रो ,
आज हम एक अच्छे विषय पर बात कर रहे हे ।
ये विषय अहंकारीयो के अहंकार को मिटाएगा।
देखो मित्रो ,
ज्ञान असीमित हे अनंत हे। इसकी कोई सीमा नहीं हे।
लेकिन अज्ञान भी असीमित और अनंत ही हे ।
अब में आप लोगो से पूछना चाहता हु। कि ज्ञान और अज्ञानता
में बड़ा कोन हे।
बताओ ।
चलो में ही बता देता हु। वैसे यह विषय बड़ा ही गूढ हे।
मित्रो,
अज्ञानता ही ज्ञान से बड़ा हे। वो केसे इसे समझना
पड़ेगा तभी तो हम पूर्ण सत्य से असत्य की परख करेंगे।
परख हमेशा असत्य की होती हे ।
और वो ज्ञान भी ज्ञान नही हे जो
पूर्ण नहीं हे ।
और अधूरे ज्ञान का जन्म होता ही हे। अज्ञानता से ।
और पूर्ण सत्य को केवल पूर्ण सत्य होकर ही ।
पाया जा सकता हे।
असत्य पूर्ण सत्य को कभी प्राप्त ही नहीं कर सकता है।
लेकिन मिट सकता हे। फिर बचता पूर्ण सत्य ही हे।
ज्ञान कितना भी प्राप्त करले हम फिर भी अज्ञानी ही रहते हे।
और हर अज्ञानी को ज्ञान की जरूरत होती हे।
लेकिन हम रहते अज्ञानी के अज्ञानी ही ।
क्युकी हमारा जन्म ही परमसुन्य से हुआ हे।
और परमसुन्य ही अहंकारी हे ।
ये परमात्मा से विमुख हुआ और विमुख होकर गिरता गिरता
अनेक परिवर्तन करता करता हुआ अनेक श्रृष्टियो का निर्माण करता हुआ अनंत योनियों में अनंत योनियां धारण करता हुआ।
अनंत सुक्ष्मता से अनंत स्थूलता की और एक चक्र में भ्रमण करता हुआ वापिस परम सुन्य में समा जाता हे।
इसे ही जन्म मरण का चक्र कहते हे।
और ये अनंतो युगों का होता हे।
ये पूर्ण ब्लैक होल होता हे।
जो अनंतो युगों बाद पूरी श्रृष्टि को निगल जाता हे।
ये ही संसार का निर्माण कर्ता हे। और ये ही विनाशक हे।
अब हमारे दिल और दिमाग में एक प्रश्न उत्पन्न होता हे।
की फिर तो ये ही परमात्मा हे।
लेकिन ये परमात्मा नहीं हे।
क्युकी पूर्ण ज्ञान तो पूर्ण आत्मा को ही होता हे।
या फिर उसकी कृपा जिस बिडले पर हो जाए
उसको ये पूर्ण ज्ञान निशुल्क मिल ही जाता हे।
लेकिन ये जरूरी नहीं की पूर्ण सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के
बाद वह पूर्ण आत्मा को प्राप्त ही करे ।
क्युकी इसके लिऐ मिटना पड़ता हे ।
असत्य को पूर्णता से।
धन्यवाद
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